राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के मंदिर-मस्जिद संबंधी बयान पर अब साधु-संतों की नाराजगी सामने आई है। देश में हिंदू संतों की प्रमुख संस्थाअखिल भारतीय संत समिति ने भागवत की टिप्पणी पर कड़ा ऐतराज जताया है।
समिति के महासचिव स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि मंदिर-मस्जिद का विषय धार्मिक है और इसे केवल धर्माचार्यों (धार्मिक नेताओं) द्वारा ही तय किया जाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि ऐसे विवादों को उठाने वाले नेताओं को अपनी सीमाओं में रहना चाहिए और यह मामला आरएसएस जैसे सांस्कृतिक संगठन के दायरे से बाहर है।
स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि धर्म से जुड़े विषयों पर निर्णय लेने का अधिकार केवल धर्माचार्यों का है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जब धर्माचार्य कोई निर्णय करेंगे, तो उसे संघ और विश्व हिंदू परिषद दोनों ही स्वीकार करेंगे। स्वामी जितेंद्रानंद ने यह भी कहा कि मोहन भागवत की पहले की इसी तरह की टिप्पणियों के बावजूद 56 नए स्थानों पर मंदिर खोजे गए हैं, जो यह दर्शाता है कि मंदिर-मस्जिद मुद्दों में अब भी रुचि और सक्रियता बनी हुई है।
जनता की भावनाओं के अनुसार कार्य करना आवश्यक
स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि धार्मिक संगठनों और संस्थाओं को जनता की भावनाओं के अनुरूप कार्य करना चाहिए। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि ऐसे संगठनों के कार्य लोगों की मान्यताओं और संवेदनाओं पर आधारित होते हैं, न कि केवल राजनीतिक उद्देश्यों पर।
स्वामी जितेंद्रानंद की यह टिप्पणी जगद्गुरु रामभद्राचार्य द्वारा मोहन भागवत के बयान पर असहमति व्यक्त करने के ठीक एक दिन बाद आई है।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा कि “मोहन भागवत हमारे अनुशासनकर्ता नहीं हैं, बल्कि हम उनके अनुशासनकर्ता हैं।” यह पहली बार है जब आरएसएस प्रमुख को भगवा परिवार के भीतर से खुला विरोध झेलना पड़ा है। इससे पहले, द्वारका शारदा पीठम और बद्रीनाथ के ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने भी संघ परिवार के खिलाफ रुख अपनाया था, लेकिन उन्हें कांग्रेस की विचारधारा से जुड़ा हुआ माना जाता था।
धार्मिक गुरुओं की स्वतंत्र सोच
विशेषज्ञों का मानना है कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य की टिप्पणी इस बात का संकेत देती है कि हिंदू धार्मिक गुरु खुद को आरएसएस के अधीनस्थ के रूप में मानने के लिए तैयार नहीं हैं। उनका दृष्टिकोण यह है कि संघ को धार्मिक मुद्दों पर निर्णय लेने में धर्माचार्यों के नेतृत्व का सम्मान करना चाहिए।
विश्लेषकों ने यह भी कहा कि यह स्थिति धार्मिक मामलों में आरएसएस की भूमिका और उसके प्रभाव को लेकर हिंदू धार्मिक समुदाय के भीतर संभावित मतभेद और विवादों की ओर इशारा करती है।
रामभद्राचार्य ने कहा कि संभल में जो घटनाएं हो रही थीं, वह वाकई चिंता का विषय थीं। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले का सकारात्मक पहलू यह है कि स्थिति हिंदुओं के पक्ष में विकसित हो रही है। हम इसे अदालतों, मतपत्रों और जनता के समर्थन से सुरक्षित रखेंगे। इसके अलावा, उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ कथित अत्याचारों पर भी गहरी चिंता व्यक्त की।
मोहन भागवत ने व्यक्त की थी चिंता
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पिछले सप्ताह मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उभरने पर अपनी चिंता जताई थी। उन्होंने लोगों को ऐसे मुद्दों को न उठाने की सलाह दी थी। मोहन भागवत का कहना था कि मंदिर-मस्जिद विवादों को बढ़ाकर और सांप्रदायिक विभाजन फैलाकर कोई भी हिंदुओं का नेता नहीं बन सकता। उनका यह बयान हिंदू दक्षिणपंथी समूहों द्वारा देशभर में विभिन्न अदालतों में दशकों पुरानी मस्जिदों पर दावे जैसे मुद्दे उठाए जाने के बाद आया।
हिंदूवादी संगठनों का कहना है कि ये पुरानी मस्जिदें, मंदिरों के स्थलों पर बनाई गई थीं। इनमें से एक मस्जिद संभल की शाही जामा मस्जिद भी है, जहां हाल ही में हिंसा हुई थी। 24 नवंबर को हुई इस हिंसा में पांच लोग जान गंवा बैठे थे।
कांग्रेस ने आरोप लगाया, पापों को धोने का प्रयास
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर कांग्रेस ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि मोहन भागवत का ‘मंदिर-मस्जिद’ विवाद न उठाने का बयान लोगों को गुमराह करने के उद्देश्य से था। कांग्रेस का आरोप है कि यह आरएसएस की ‘खतरनाक’ कार्यप्रणाली को दिखाता है, क्योंकि इसके नेता अक्सर ‘जो कहते हैं, वह नहीं करते’ और ऐसे मुद्दों को उठाने वालों का समर्थन करते हैं। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए आरएसएस प्रमुख पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि अगर मोहन भागवत ईमानदार हैं, तो उन्हें सार्वजनिक रूप से यह घोषणा करनी चाहिए कि संघ भविष्य में कभी भी उन नेताओं का समर्थन नहीं करेगा जो सामाजिक सद्भाव को खतरे में डालते हैं।
जयराम रमेश ने कहा कि आरएसएस प्रमुख ऐसा कभी नहीं कहेंगे, क्योंकि मंदिर-मस्जिद का मुद्दा आरएसएस के इशारे पर उठाया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि कई मामलों में, जिन लोगों ने विभाजनकारी मुद्दों को भड़काया और दंगे फैलाए, उनके आरएसएस से संबंध होते हैं। आरएसएस उन्हें वकील से लेकर केस दर्ज कराने तक में मदद करता है। रमेश का मानना है कि मोहन भागवत को लगता है कि ऐसे बयान देकर आरएसएस के पाप धोे जाएंगे और उनकी छवि बेहतर हो जाएगी।