प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज संगम की पवित्र भूमि पर 13 जनवरी 2025 से महाकुंभ का भव्य आयोजन शुरू होने जा रहा है। इस ऐतिहासिक आयोजन में भाग लेने के लिए सभी 13 अखाड़ों के साधु-संत भी प्रयागराज पहुंच रहे हैं। अखाड़ों के नगर प्रवेश के साथ धर्म ध्वजाओं की स्थापना की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। कई अखाड़ों की पेशवाई, यानी महाकुंभ छावनी में प्रवेश की शोभायात्राएं भी संपन्न हो चुकी हैं। वहीं, वैष्णव परंपरा के तीनों अनि अखाड़ों की धर्म ध्वजा की स्थापना का विशेष आयोजन शनिवार, 28 दिसंबर को किया जाएगा। इस कार्यक्रम में गोरक्ष पीठ के पीठाधीश्वर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे।
कम लोग यह जानते हैं कि वैष्णव परंपरा के तीनों अनि अखाड़ों के आराध्य ईष्ट देव हनुमान जी ही हैं। हालांकि, इन तीनों अखाड़ों की धर्म ध्वजाएं अपने-अपने विशेष रंगों में अलग-अलग हैं। निर्मोही अनि अखाड़े की धर्म ध्वजा सफेद रंग की होती है, जो शांति और सद्भाव का प्रतीक है। वहीं, निर्वाणी अनि अखाड़े की धर्म ध्वजा केसरिया लाल रंग की है, जो शौर्य और पराक्रम का प्रतीक मानी जाती है।
श्री महंत राम जी दास के अनुसार, इन धर्म ध्वजाओं के रंग अखाड़ों की परंपरा और विचारधारा को दर्शाते हैं, जो महाकुंभ के इस आयोजन को और भी विशेष बनाते हैं।
अखाड़ों को सनातन धर्म की रक्षा के लिए न केवल शास्त्र बल्कि शस्त्र की शिक्षा भी दी जाती है। वहीं, दिगंबर अनि अखाड़े की धर्म ध्वजा पंच रंगों में होती है। इन पांच रंगों की धर्म ध्वजा का अर्थ सभी को अपने में समाहित करने और एकता का संदेश देना है।
दिगंबर अनि अखाड़े की धर्म ध्वजा शांति, सद्भाव, शौर्य, पराक्रम के साथ-साथ धर्म की स्थापना और प्रचार-प्रसार का प्रतीक मानी जाती है। इसके अलावा, धर्म ध्वजा जिस लकड़ी में लगाई जाती है, उसका रंग भी विशेष रूप से अलग-अलग होता है, जो अखाड़े की विशिष्ट परंपराओं और उद्देश्यों को दर्शाता है।
निर्मोही अनि अखाड़े की धर्म ध्वजा जिस लकड़ी में लगाई जाती है, वह धवल श्वेत रंग की होती है, जबकि निर्वाणी अनि अखाड़े की धर्म ध्वजा की लकड़ी केसरिया रंग की होती है। निर्मोही अनि अखाड़े के श्री महंत रामदास जी महाराज के अनुसार, अखाड़ा उन सभी का स्वागत करता है जो सनातन धर्म और उसकी परंपराओं का सम्मान करते हुए आते हैं।
हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई हमारी संस्कृति, धर्म, ईष्ट देवों या धार्मिक ग्रंथों पर हमला करता है, तो नागा संन्यासी उसका उचित उत्तर देने में पीछे नहीं हटते। यह अखाड़ों की परंपरा है कि वे धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।