प्रयागराज: महाकुंभ के दौरान नागा साधुओं की तपस्या और रहस्यमय जीवनशैली हमेशा लोगों के लिए एक रहस्य बनी रही है। इन रहस्यों को उजागर करने के लिए महाकुंभ में पहुंचे नागा साधु दिगंबर विजयपुरी बाबा से विशेष बातचीत की। मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर से आए बाबा ने बताया कि नागा साधु बनने की प्रक्रिया बहुत कठिन और रहस्यमय होती है। इस दौरान साधुओं को 48 घंटे की एक विशेष दीक्षा दी जाती है, जो रात 2 बजे शुरू होती है। यह दीक्षा एक गुप्त विधि है, जिसमें साधुओं को आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां दी जाती हैं, जो उनकी कामवासना को पूरी तरह समाप्त कर देती हैं।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया बहुत गहरी और कठिन है। इसे अपनाने से पहले साधु को कई मानसिक और शारीरिक परीक्षा से गुजरना पड़ता है। 48 घंटे की दीक्षा के दौरान उन्हें खास आहार और पेय दिए जाते हैं, जो उनकी मानसिक स्थिति को स्थिर करने के लिए होते हैं। नागा साधु अपनी जिंदगी को पूरी तरह प्राकृतिक रूप से जीते हैं और शरीर को जितना हो सके प्राकृतिक साधनों से शुद्ध करते हैं। वे किसी भी प्रकार की भौतिक सुख-सुविधाओं से दूर रहते हैं और मानते हैं कि शारीरिक सुखों का त्याग ही सच्चे आत्मज्ञान की ओर पहला कदम है।
कामवासना पर काबू पाना केवल एक मानसिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक संघर्ष है। नागा साधु इसे अपनी साधना का हिस्सा मानते हैं। उनका कहना है कि मन की इच्छाओं पर नियंत्रण पाने के लिए साधक को पहले खुद को पहचानना और अपनी आत्मा से जुड़ना जरूरी है। यह एक तपस्वी जीवन की ओर बढ़ने का मार्ग है, जो शारीरिक कठिनाई के साथ-साथ मानसिक दृढ़ता की भी मांग करता है। नागा साधु अपने जीवन को इस तरह से जीते हैं कि हर सांस और हर कार्य में आत्मा का परिष्कार हो।
नागा साधु का जीवन आत्मसाक्षात्कार की ओर बढ़ने की दिशा में होता है। उनका मानना है कि कामवासना पर विजय पाकर ही वे अपने जीवन के उच्चतम आध्यात्मिक उद्देश्य की प्राप्ति कर सकते हैं। दीक्षा और तपस्या के दौरान वे अपने अंदर की वास्तविक शक्ति को महसूस करते हैं और उसे दुनिया से जोड़ते हैं। उनके जीवन में संस्कारों और भारतीय संस्कृति का गहरा प्रभाव है। वे अपने पूर्वजों द्वारा दिए गए उपदेशों का पालन करते हुए अपने जीवन को सरल और पवित्र रखते हैं। उन्हें विश्वास है कि आत्मा का परम सुख तभी प्राप्त होता है जब हम अपनी सभी इच्छाओं का त्याग करते हैं।
रुद्राक्ष और भभूत का महत्व
दिगंबर विजयपुरी बाबा ने बताया कि रुद्राक्ष साधुओं के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं। उन्होंने कहा, “रुद्राक्ष हमें शांति और ध्यान में गहरी मदद प्रदान करता है। इसका वजन लगभग 35 किलो है, लेकिन महादेव की कृपा से हमें इससे कोई कठिनाई नहीं होती।” बाबा ने यह भी बताया कि रुद्राक्ष धारण करना साधक को मानसिक संतुलन और आंतरिक शांति प्राप्त करने में सहायता करता है।
बाबा के शरीर पर भभूत का आवरण था, जिसे लेकर उन्होंने कहा, “भभूत हमारे लिए सबसे पवित्र वस्त्र है। नागा साधु कपड़े नहीं पहनते क्योंकि हमारा जीवन त्याग, तपस्या और साधना का प्रतीक है। भभूत हमें सांसारिक सुखों और वासनाओं से दूर रखती है, जिससे हम अपने आध्यात्मिक मार्ग पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
मुक्ति की राह पर नागा जीवन
बाबा ने बताया कि नागा साधु बनने का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है। उन्होंने कहा, “नागा साधु का जीवन हमें बार-बार जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाने के लिए है। हमारी तपस्या, साधना और भजन इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए होते हैं, ताकि हम संसार के
नागा बनने की कठिन तपस्या
दिगंबर विजयपुरी बाबा ने बताया कि नागा साधु बनने के लिए साधकों को 12 से 13 साल तक कठिन तपस्या करनी होती है। इस अवधि में साधुओं को न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी अपने सारे सांसारिक सुखों और सुविधाओं का त्याग करना पड़ता है। यह तपस्या उन्हें आत्मा के स्तर पर उन्नति करने और अपने जीवन को पूरी तरह से शुद्ध करने का अवसर देती है।
महाकुंभ में नागाओं का आकर्षण
महाकुंभ में नागा साधुओं की तपस्या और जीवनशैली हमेशा से श्रद्धालुओं और शोधकर्ताओं के लिए एक गहरी आकर्षण का विषय रही है। उनके जीवन का सरलता, तपस्या और त्याग का उदाहरण सभी को प्रेरित करता है। बाबा ने अंत में लोगों से अपील की कि वे महाकुंभ में शामिल होकर अपने जीवन को पवित्र करें और मोक्ष की दिशा में कदम बढ़ाएं, क्योंकि यह अवसर आत्मा के उन्नति और शुद्धता की ओर एक बड़ा कदम है।