डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर दूसरी बार शपथ लेंगे, और इस समारोह में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को न्योता भेजा गया है। वहीं, पीएम मोदी को इस कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया गया है। इस निर्णय के पीछे के कारणों को लेकर अंतरराष्ट्रीय राजनीति और रिश्तों पर सवाल उठ रहे हैं, खासकर भारत और अमेरिका के बीच के जटिल संबंधों के संदर्भ में।
20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर दूसरी बार शपथ लेंगे। शपथ ग्रहण समारोह में कई वैश्विक नेताओं को निमंत्रण भेजा गया है, जिनमें चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी शामिल हैं। हालांकि, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम इस सूची में नहीं है, जिससे राजनीतिक और कूटनीतिक हलकों में इस फैसले को लेकर चर्चा हो रही है।
पिछले साल सितंबर में, जब डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस अमेरिकी राष्ट्रपति पद की दौड़ में थे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाग लेने न्यूयॉर्क गए थे। उस समय ट्रंप ने मोदी से मिलने की इच्छा जताई थी, क्योंकि वह मानते थे कि मोदी के साथ एक हाई-प्रोफाइल मुलाकात उनकी चुनावी छवि को मजबूत करेगी। अर्जेंटीना, हंगरी और इटली के नेताओं ने ट्रंप से मुलाकात की, और मोदी के साथ बैठक ट्रंप के लिए एक बड़ा संदेश साबित हो सकती थी।
भारत ने अमेरिका के साथ अपने रिश्तों में संतुलन बनाए रखने के लिए कूटनीतिक कदम उठाया है
जब ट्रंप ने मोदी से मुलाकात की इच्छा जताई, भारतीय राजनयिकों ने एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक निर्णय लिया। 2019 में ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम के दौरान ट्रंप की अप्रत्यक्ष चुनावी मदद को कूटनीतिक गलती माना गया था। भारतीय विदेश मंत्रालय ने यह सुनिश्चित किया कि अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों से दूरी बनाए रखना भारत के दीर्घकालिक हित में होगा। अगर मोदी ट्रंप से मिलते और कमला हैरिस चुनाव जीत जातीं, तो भारत-अमेरिकी संबंधों पर नकारात्मक असर पड़ सकता था।
ट्रंप की नाराजगी और शपथ ग्रहण का निमंत्रण: भारत का कूटनीतिक फैसला
ट्रंप को इस बात का गुस्सा था कि मोदी से मुलाकात चुनावी फायदा दिला सकती थी, लेकिन भारत ने इससे बचने का फैसला किया। अब ट्रंप ने चुनाव जीतने के बाद शपथ ग्रहण समारोह के लिए उन नेताओं को बुलाया है जो उनके वैचारिक रूप से करीब हैं या जिन्होंने उनका समर्थन किया। चीन के साथ रिश्तों को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने राष्ट्रपति शी जिनपिंग को निमंत्रण भेजा, लेकिन जिनपिंग ने अपने वरिष्ठ प्रतिनिधि को भेजने का निर्णय लिया है।
जयशंकर की अमेरिका यात्रा और ट्रंप के शपथ ग्रहण का निमंत्रण
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दिसंबर में अमेरिका का दौरा किया और ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों से मुलाकात की। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य भारत-अमेरिका संबंधों को और मजबूत करना था, और विदेश मंत्रालय ने इसे दोनों देशों के वैश्विक रणनीतिक साझेदारी में हुई प्रगति की समीक्षा के तौर पर बताया। भारतीय सरकार ने स्पष्ट किया कि किसी भी भारतीय अधिकारी ने कभी भी अमेरिकी राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में भाग नहीं लिया है, और उनका उद्देश्य दोनों अमेरिकी दलों से समान संबंध बनाए रखना है।
भारत ने अमेरिका के साथ संतुलित संबंध बनाए रखा, मोदी नहीं
भारत ने हमेशा सुनिश्चित किया है कि अमेरिका के साथ उसके संबंध किसी एक राजनीतिक दल तक सीमित न रहें। ट्रंप और मोदी के बीच अच्छे संबंध होने के बावजूद, भारत ने अपने कूटनीतिक संतुलन को बनाए रखने का निर्णय लिया है। प्रधानमंत्री मोदी का शपथ ग्रहण समारोह में शामिल न होना भारत-अमेरिका संबंधों पर दीर्घकालिक असर नहीं डालेगा, और यह दिखाता है कि भारत अपनी विदेश नीति को एक वैश्विक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से देखता है।