Wednesday, January 22, 2025
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महाकुंभ 2025: आस्था की गंगा में डूबा संसार, पहले दिन 3:50 करोड लोगों ने किया अमृत स्नान

Maha Kumbh Mela: न केवल भारत, बल्कि एशिया और यूरोप से भी संस्कृति प्रेमी पवित्र स्नान और ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बनने के लिए एकत्र हुए। श्रद्धा की लहरें त्रिवेणी के तट पर उमड़ पड़ीं। तीर्थराज की सुबह के पहले उजाले से पहले ही, कड़ाके की सर्दी के बीच महाकुंभ नगरी में आस्था से भरे श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ आया।

महाकुंभ के पहले स्नान पर्व पर संगम तट पर आस्था का अद्वितीय दृश्य देखने को मिला। मकर संक्रांति के दिन, जहां भक्तों ने गंगा, यमुनाजी और सरस्वती के संगम में अमृत स्नान किया, वहीं अखाड़ों ने अपने धार्मिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों का पालन करते हुए संगम में डुबकी लगाई। नागा साधुओं के शक्ति प्रदर्शन और उनकी कला ने श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

महाकुंभ के पहले स्नान पर्व पर संगम तट पर आस्था का अद्वितीय दृश्य देखने को मिला। मकर संक्रांति के दिन, जहां भक्तों ने गंगा, यमुनाजी और सरस्वती के संगम में अमृत स्नान किया, वहीं अखाड़ों ने अपने धार्मिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों का पालन करते हुए संगम में डुबकी लगाई। नागा साधुओं के शक्ति प्रदर्शन और उनकी कला ने श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

3.5 करोड़ भक्तों ने संगम में पुण्य स्नान किया

इस वर्ष के महाकुंभ में संगम तट पर एक अद्भुत दृश्य था, जब अखाड़ों के प्रमुख और संत रथों पर सवार होकर संगम की ओर बढ़े। इस ऐतिहासिक अवसर का साक्षी बनने के लिए श्रद्धालुओं का सैलाब ब्रह्म मुहूर्त से ही उमड़ पड़ा। आस्था की यह लहर इतनी विशाल थी कि 3.5 करोड़ भक्तों ने अपनी श्रद्धा का अद्भुत प्रदर्शन करते हुए डुबकी लगाई। अगले महत्वपूर्ण स्नान पर्व 29 जनवरी और 3 फरवरी को होंगे, जो इस महापर्व को और भी दिव्य बना देंगे।

आचार्य, मंडलेश्वर और महामंडलेश्वर की छटा में घिरी भक्ति की लहरें

महाकुंभ 2025 ने दुनियाभर के भक्तों को संगम तट पर एकत्र किया। आचार्य और महामंडलेश्वर अपने रथों पर सजे-धजे संगम पहुंचे, और उनके साथ-साथ संस्कृति प्रेमियों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। ठंड की परवाह किए बिना श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने के लिए संगम पहुंचे। इस अद्वितीय दृश्य ने महाकुंभ नगर को एक विशाल धर्म नगरी में बदल दिया, जहां भक्तों का उत्साह और श्रद्धा समाहित हो गई।

महाकुंभ के इस पवित्र अवसर पर, देश-विदेश से श्रद्धालुओं का विशाल जमावड़ा संगम पर उमड़ा। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के मिलन स्थल पर अमृत स्नान का यह दृश्य भारतीय संस्कृति की समृद्धि और श्रद्धा को दर्शाता था। अखाड़ों के नागा साधु, भाला और त्रिशूल लिए, अपनी भव्यता के साथ पहले अमृत स्नान में शामिल हुए, और उनका शाही रूप श्रद्धालुओं के लिए एक दिव्य दर्शन बन गया।

साधु-संत घोड़े और रथों पर सवार होकर शोभायात्रा में शामिल हुए, और उनके साथ चल रही भजन मंडलियों की मधुर ध्वनि और श्रद्धालुओं के जयघोष ने वातावरण को और भी अधिक दिव्य बना दिया। यह दृश्य महाकुंभ के एक ऐतिहासिक पल का प्रतीक था, जिसमें आस्था और भक्ति का संगम था। इससे पहले, महाकुंभ के प्रथम स्नान पर्व पौष पूर्णिमा पर 1.75 करोड़ श्रद्धालुओं ने पुण्य की डुबकी लगाई थी, जो एक ऐतिहासिक और अद्वितीय घटना थी।

महानिर्वाणी अखाड़े ने किया सबसे पहले पुण्य स्नान

महाकुंभ के पहले अमृत स्नान में सबसे पहले रथ पर सवार होकर महानिर्वाणी अखाड़े के नागा संन्यासी संगम पहुंचे। उनके साथ भस्म से सजे हुए अटल अखाड़े के नागा अपनी तलवारों और भालों के साथ जयकारे लगाते हुए चलते रहे, जो इस अद्भुत दृश्य को और भी भव्य बना रहे थे। इसके बाद, निर्मल अखाड़े के संतों ने 3:50 बजे स्नान किया, और इस पवित्र आयोजन का समापन हुआ।

त्रिवेणी के तट पर बच्चों जैसी खुशियाँ और अठखेलियाँ

प्रथम अमृत स्नान के दौरान नागा साधुओं ने अपनी पारंपरिक और अद्वितीय गतिविधियों से हर किसी का ध्यान आकर्षित किया।

अखाड़ों का नेतृत्त्व कर रहे नागा साधु संगम तट पर पहुंचे, भाले और तलवारों को लहराते हुए युद्ध कला का अद्भुत प्रदर्शन करते हुए।

अखाड़ों की शोभायात्रा में सैकड़ों नागा घोड़ों पर सवार होकर पहुंचे, और उनकी जटाओं में फूलों और मालाओं का आदान-प्रदान, त्रिशूलों का लहराना और नगाड़ों की ध्वनि ने वातावरण को मंत्रमुग्ध कर दिया।

साधु 21 श्रृंगार के साथ पहले स्नान में डुबकी लगाने पहुंचे, और हिमालय की कंदराओं, मठों और मंदिरों में रहने वाले धर्मरक्षक नागा मां गंगा की गोदी में बच्चों की तरह अठखेलियां करते हुए देखे गए।

महिला नागा संन्यासियों की महाकुंभ में बढ़ी संख्या

तप और योग में संलग्न रहने वाली महिला नागा संन्यासियों की भी बड़ी संख्या महाकुंभ में उपस्थित रही। उनकी मौजूदगी ने इस पवित्र आयोजन को और भी विशिष्ट बना दिया। नागा साधुओं ने अपने अनुशासन और अद्वितीय प्रदर्शन से पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि महाकुंभ सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह मनुष्य के आत्मिक और प्राकृतिक मिलन का भी उत्सव है।

आधी रात से ही श्रद्धालु सिर पर गठरी और हाथ में झोला लेकर गंगा की ओर तेज़ी से बढ़ रहे थे। नागवासुकि मंदिर और संगम क्षेत्र की सड़कों पर तड़के के समय केवल श्रद्धालुओं के सिर दिखने लगे। संगम की ओर जाने वाली सभी सड़कें आस्था से भरी हुई थीं, जहां हर कदम में श्रद्धा और विश्वास की झलक मिल रही थी।

घाटों से लेकर पांटून पुलों तक कड़ी सुरक्षा व्यवस्था

हर मार्ग पर बैरिकेडिंग लगाकर वाहनों की सघन जांच की जा रही थी। हर कदम पर पुलिस और अर्धसैनिक बलों की तैनाती थी, जो सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाए हुए थे। पुलिस टीम ने घोड़े के साथ मेला क्षेत्र में पैदल मार्च किया और अखाड़ों के अमृत स्नान के लिए रास्ते को बाधारहित बनाए रखा। पांटून पुलों से लेकर घाटों तक हर स्थान पर चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था कायम थी, ताकि श्रद्धालुओं और साधुओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

शाम चार बजे तक 2.60 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम में पुण्य की डुबकी लगाई: 12 किमी लंबे घाटों पर प्रथम अमृत स्नान पर्व के दौरान 2.60 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम में पवित्र डुबकी लगाई।

12 किमी लंबे घाटों पर श्रद्धालुओं ने लगाई डुबकी: 12 किलोमीटर लंबे घाटों पर आस्थावान श्रद्धालुओं ने प्रथम अमृत स्नान के अवसर पर डुबकी लगाई।

महाकुंभ में दुनियाभर के श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़: 661 किलोमीटर लंबे चकर्ड प्लेट मार्गों पर दुनिया भर से आए श्रद्धालुओं के कारण महाकुंभ गुलजार हो गया।

महाकुंभ मेला के 25 सेक्टरों में बढ़ी रंगत: महाकुंभ मेला के 25 सेक्टरों में आस्था और श्रद्धा का माहौल और भी जीवंत हो गया।

30 पांटून पुलों पर दिनभर लंबी कतारें लगी रहीं: सुबह से रात तक 30 पांटून पुलों पर श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगी रही।

बीमार पड़ीं लॉरेन पॉवेल जॉब्स, नहीं कर सकीं पुण्य की डुबकी

प्रयागराज में अमेरिका की प्रसिद्ध महिला उद्यमी लॉरेन पॉवेल जॉब्स
प्रयागराज में अमेरिका की प्रसिद्ध महिला उद्यमी लॉरेन पॉवेल जॉब्स

लॉरेन पॉवेल जॉब्स की तबियत बिगड़ी, पुण्य स्नान से वंचित रहीं कल्पवास के लिए संगम आईं अमेरिका की अरबपति महिला उद्यमी लॉरेन पॉवेल जॉब्स बीमार हो गई हैं। निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि ने बताया कि लॉरेन के हाथों में चकत्ते पड़ने के कारण वह अमृत स्नान नहीं कर सकीं। ठंडे मौसम और संगम की रेती पर आ रही ठिठुरन ने उनकी एलर्जी को बढ़ा दिया।

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