केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों की लंबे समय से चली आ रही मांग को स्वीकार करते हुए 8वें वेतन आयोग का गठन कर दिया है। पिछले सप्ताह इस आयोग के गठन की आधिकारिक घोषणा की गई थी। इसके बाद सरकारी कर्मचारी यह हिसाब लगाने में व्यस्त हो गए हैं कि अगर 8वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होती हैं, तो उनकी सैलरी में कितना बढ़ोतरी हो सकती है। विभिन्न कर्मचारी संगठनों को उम्मीद है कि अगर सरकार ने अपनी उदारता दिखाई, तो 8वें वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये से बढ़कर 40,000 रुपये के पार जा सकता है।
अगर ऐसा होता है, तो एक अनुमान के अनुसार, सरकार को इसके लिए करीब दो लाख करोड़ रुपये का बजट आवंटित करना होगा। हालांकि, ऑल इंडिया एनपीएस एम्पलाइज फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मंजीत सिंह पटेल इस राशि को कोई बड़ा बोझ नहीं मानते। उनका कहना है कि 91 लाख एनपीएस कर्मियों के योगदान से सरकार को हर महीने 12,000 करोड़ रुपये मिलते हैं। ब्याज और महंगाई भत्ते (डीए) में बढ़ोतरी को जोड़ने से यह आंकड़ा लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। इसके अलावा, चूंकि वेतन आयोग हर दस साल में गठित होता है, केंद्र सरकार को इस राशि का इंतजाम करना बेहद आसान होगा।
सूत्रों के अनुसार आठवें वेतन आयोग के गठन और उसकी सिफारिशों से भारत सरकार पर करीब 2 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा, जिसे बजट में समायोजित करना होगा। हालांकि, वे मानते हैं कि सरकार के पास देने के लिए पैसे की कमी नहीं है, और इसके लिए किसी अतिरिक्त टैक्स की आवश्यकता नहीं होगी। सरकार को किसी अन्य खर्च में कटौती भी नहीं करनी पड़ेगी।
इस फैसले को प्राइवेट सेक्टर अलग नजरिए से देख रहा है, जबकि देश में 91 लाख एनपीएस कर्मचारी हैं। इन कर्मचारियों के योगदान से सरकार को हर महीने लगभग 12,000 करोड़ रुपये मिल रहे हैं, जो सालभर में ब्याज और डीए बढ़ोतरी के साथ लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये हो जाते हैं।
सरकार इस धन का इस्तेमाल अपने विभिन्न प्रोजेक्ट्स के लिए करती है। वेतन आयोग का बजट भारत के कुल सालाना बजट का केवल 30वां हिस्सा है। इसका मतलब यह है कि हर साल हम लोग इसी मात्रा में सरकार को अंशदान करते हैं, जबकि वेतन आयोग के गठन और सिफारिशों का प्रभाव 10 साल बाद ही दिखता है, और इससे केवल 10-20% तक वेतन बढ़ता है।
जो इसे बोझ मानते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि पे स्ट्रक्चर का लाभ सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मिलता है। वेतन आयोग के फैसलों के बाद, निजी कंपनियों को भी अपने वेतनमानों में बदलाव करना पड़ता है, ताकि महंगाई के हिसाब से वेतन सही रहे। अगर वेतन आयोग नहीं होगा तो सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में वेतनमान मानव विकास सूचकांक के अनुरूप नहीं होंगे, और इससे देश का एक बड़ा वर्ग गरीबी में फंसा रहेगा।
वेतन आयोग से सरकार पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा। इस पूरी प्रक्रिया को हमारे निवेश से आसानी से संभाला जा सकता है। इतना ही नहीं, यह पैसा इतना पर्याप्त है कि इससे रिटायरमेंट पर ओपीएस (ऑल्ड पेंशन स्कीम) भी दी जा सकती है।
7वें वेतन आयोग में न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये था, जबकि 6वें आयोग में यह केवल 7,000 रुपये था। वेतन में यह बढ़ोतरी फिटमेंट फैक्टर के आधार पर होती है, जो सरकारी कर्मचारियों के मूल वेतन और भत्तों की गणना करने का तरीका है। फिटमेंट फैक्टर के जरिए कर्मचारियों का मौजूदा वेतन नए ढांचे में बदला जाता है। सातवें वेतन आयोग में फिटमेंट फैक्टर 2.57 था, जबकि छठे में यह 1.86 था। अब आठवें वेतन आयोग में फिटमेंट फैक्टर को 2.8 या 2.9 तक बढ़ाए जाने की संभावना है। अगर ऐसा हुआ, तो न्यूनतम वेतन में भारी इजाफा हो सकता है।