Thursday, September 11, 2025
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वृद्धावस्था की दहलीज पर सिर पर छत की बाट जोटते भंवर भील

मावली। हालांकि यह अजीब है कि ग्रामीण क्षेत्र में और वह भी आदिवासी परिवार में किसी बच्चे का ना होना कम से कम हमारे 30 साल के पत्रकारिता के अनुभव में तो यह सामने नहीं आया है। महिला के नाते प्रथा में चले जाना या कोई और सामाजिक रीतियों के चलते दंपती के अचानक संतान विहीन हो जाना, लेकिन ऐसा परिवार आज दिन तक सामने नहीं आया ग्रामीण क्षेत्र में खास तौर पर की उनके संतान ही ना हो।
खैर हम बात कर रहे हैं भंवर भील कि जो करीब 55 बसंत देख चुके हैं। उनकाे कोई संतान नहीं है, उनकी स्थिति खराब है ।

आवाज देकर हमने उन्हें बुलाया, तो आए उन्होंने कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ भी उन्हें नहीं मिला, अपने कच्चे घर को दिखाते हुए कहा कि सर्दी बरसात और गर्मी में हमें इसी में ही जैसे गुजारा करना पड़ रहा है उन्होंने बताया कि उनकाे कोई संतान नहीं है। पास में खड़े बच्चों की फौज खिलखिला कर यह सब देखते हुए सुन रही थी, उन्हें देखते हुए हमारा ध्यान भी उस और गया तो उन्होंने कहा कि यह मेरे रिश्तेदार के बच्चे हैं वे मायूस थे जिंदगी ने तो उन्हें निराश किया ही है लेकिन हर 5 साल में बदलती सरकारों ने भी उन्हें कोई आसरा नहीं दिया या यूं कहें कि यह व्यवस्था ही आसरा दिलाने में उन्हें असफल रही, भँवरभील उदयपुर जिले की मावली उपखंड कार्यालय से मात्र 5 किलोमीटर दूर काला खेत गांव के रहने वाले हैं। और विकास की गंगा अगर यहां तक भी नहीं पहुंच पाई है तो यह जिला प्रशासन के लिए सोचनीय विषय है।

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