प्रीत सिरोही की मुहिम: दिल्ली में अवैध धार्मिक निर्माणों के खिलाफ एक जागरूक नागरिक की लड़ाई
रेलवे स्टेशन, सड़क किनारे, पहाड़ी इलाकों या फिर जंगलों में अचानक उग आए धार्मिक ढांचे—यह दृश्य अब भारत के कई हिस्सों में आम हो चला है। चाहे देश की राजधानी हो या कोई सीमावर्ती गांव, जगह-जगह बिना अनुमति बने धार्मिक निर्माण सामने आते रहते हैं।
इन निर्माणों को लेकर अक्सर आम नागरिकों में असंतोष दिखता है, लेकिन अधिकांश लोग केवल सोशल मीडिया तक ही प्रतिक्रिया देकर आगे बढ़ जाते हैं। ऐसे में कुछ लोग अपने व्यक्तिगत स्तर पर सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। उन्हीं में से एक हैं प्रीत सिंह सिरोही, जो अवैध धार्मिक ढांचों के खिलाफ कानूनी और सामाजिक संघर्ष की राह पर चल पड़े हैं।
दिल्ली में अवैध निर्माणों की पहचान
34 वर्षीय प्रीत सिंह सिरोही अब तक दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में करीब 2000 से अधिक अवैध धार्मिक ढांचों की पहचान कर चुके हैं। उनका कहना है कि इनमें से अधिकांश निर्माण सरकारी ज़मीन पर बिना किसी वैध अनुमति के किए गए हैं। उन्होंने कई जगहों पर MCD और DDA के सहयोग से कार्रवाई भी करवाई है, जैसे कि मंगोलपुरी Y ब्लॉक, बवाना और शाहबाद क्षेत्र में स्थित कुछ मस्जिदों पर।
गाड़ी में रहने को मजबूर
प्रीत को उनके काम के चलते कई बार धमकियाँ भी मिली हैं। उन्होंने बताया कि उनकी जान को खतरा है और उन्हें पाकिस्तान समेत अन्य विदेशी नंबरों से कॉल आते हैं। लगातार पीछा किए जाने के चलते वह अब अपना घर छोड़ चुके हैं और अपनी गाड़ी को ही अस्थायी आवास बना लिया है।
सेव इंडिया फाउंडेशन और सामाजिक सरोकार
2019 में प्रीत ने “सेव इंडिया फाउंडेशन” नामक एक संगठन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य अवैध निर्माण, धर्मांतरण और गौ-रक्षा जैसे मुद्दों पर जागरूकता फैलाना है। उनका कहना है कि 2014 में एक गाय को कटने से बचाने के बाद ही उन्होंने यह राह चुनी थी।
व्यक्तिगत संकल्प और जीवनशैली
प्रीत सिंह ने एक विशेष संकल्प लिया है—जब तक देश में गौमाता प्लास्टिक खा रही है, वह अपने बाल नहीं कटवाएँगे। वे केवल फलाहार और पानी पर जीवन यापन करते हैं। उनका कहना है कि जब तक समाज में बदलाव नहीं आता, वे इस संकल्प से पीछे नहीं हटेंगे।
कानूनी तैयारी और भविष्य की रणनीति
प्रीत का कहना है कि उन्होंने दिल्ली के 125 अवैध मदरसों की सूची तैयार कर ली है और जल्द ही इस विषय को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट का रुख करेंगे। वे दावा करते हैं कि उनके पास पुख्ता दस्तावेज़ हैं, जो यह साबित करते हैं कि ये निर्माण किसान भूमि पर अतिक्रमण कर बनाए गए हैं।
चुनौतियाँ और उद्देश्य
प्रीत स्वीकारते हैं कि यह लड़ाई आसान नहीं है। उन्हें अकेलेपन का अनुभव होता है और कई बार प्रशासनिक सहयोग में भी देरी होती है। लेकिन उनका उद्देश्य स्पष्ट है—सरकारी ज़मीन को मुक्त कराकर उस पर स्कूल और अस्पताल जैसे जनहित के निर्माण करवाना