वक्फ संशोधन बिल को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अब तक दो सुनवाई हो चुकी हैं। अब सभी की निगाहें तीसरी सुनवाई पर टिकी हैं, जो बेहद अहम मानी जा रही है। देश के मुसलमान ही नहीं, बड़ी संख्या में हिंदू समाज भी इस मामले से जुड़े फैसले की प्रतीक्षा कर रहा है। इस मुद्दे की गूंज सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है — पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में भी इसे लेकर बेचैनी और खौफ का माहौल है
🔹 क्या है ‘वक्फ बाय यूजर 🔹कलेक्टर को मिले किस अधिकार पर मचा है विवाद 🔹मुस्लिम समाज को किस बात की सबसे बड़ी चिंता है |
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने केंद्र सरकार से ‘वक्फ बाय यूजर’ के मुद्दे पर 7 दिनों के भीतर जवाब मांगा है। फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून पर किसी तरह की रोक नहीं लगाई है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि 110 से 120 फाइलें पढ़ना संभव नहीं, इसलिए सिर्फ 5 अहम बिंदु तय किए जाएंगे, जिन पर सुनवाई होगी। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से इन बिंदुओं पर आपसी सहमति बनाने को कहा है। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि केंद्र सरकार 7 दिनों में विस्तृत जवाब दाखिल करेगी। इसके साथ ही सरकार ने भरोसा दिलाया कि धारा 9 और 14 के तहत अभी वक्फ बोर्ड या परिषद में कोई नियुक्ति नहीं होगी। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि अगली सुनवाई तक न तो ‘वक्फ बाय यूजर’ में कोई बदलाव किया जाएगा और न ही कलेक्टर द्वारा इसमें कोई दखल दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस बयान को रिकॉर्ड पर ले लिया है।
CJI के वक्फ बाय यूजर पर जोर देने के क्या मायने हैं
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने वक्फ बाय यूजर पर जोर देते हुए यह स्पष्ट किया कि वक्फ कानून और 2013 में किए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को अलग से देखा जाएगा। कोर्ट ने कहा कि 2025 के मामले में रिट याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं को विशेष स्थिति में जवाब दाखिल करने की स्वतंत्रता होगी। कोर्ट ने सिर्फ पाँच प्रमुख बिंदुओं पर सुनवाई की योजना बनाई है वक्फ बाय यूजर का मतलब है कि किसी संपत्ति का धार्मिक या धर्मार्थ उपयोग, जैसे मस्जिद या कब्रिस्तान, इसके वक्फ के रूप में स्वीकार किए जाने की वजह बन सकता है, भले ही इसे औपचारिक रूप से वक्फ घोषित नहीं किया गया हो। इस अवधारणा में अब यह शर्त भी जोड़ी गई है कि वक्फ करने वाले व्यक्ति को कम से कम पिछले पांच सालों से इस्लाम धर्म का पालन करना चाहिए।

वक्फ की अवधारणा की शुरुआत कैसे हुई थी?
वक्फ की अवधारणा तब उत्पन्न हुई जब खलीफा उस्मान ने मदीना के पास एक रेगिस्तानी क्षेत्र में पानी बेचने वाले व्यक्ति को देखा। पानी की कमी से परेशान होने के कारण, उन्होंने अल्लाह के नाम पर पानी की व्यवस्था की ताकि ऊंटों को मुफ्त में पानी मिल सके। आज भी इस वक्फ का अस्तित्व है, जो 1400 साल पहले की घटना है। इस्लामी देशों में एक औकाफ मंत्रालय होता है जो वक्फ के कामकाज की देखरेख करता है। इन मंत्रालयों में उलेमा, यानी धार्मिक विद्वान, इस्लामी न्यायशास्त्र का पालन करते हैं। भारत में यह व्यवस्था थोड़ी अलग है, क्योंकि यह एक मुस्लिम देश नहीं है।
इस्लामी देशों में वक्फ की व्यवस्था
इस्लामी देशों में वक्फ की व्यवस्था हमारे देश के वक्फ विभाग जैसी ही होती है, हालांकि इन्हें अनेक नामों से जाना जाता है जैसे औकाफ, फाउंडेशन, एंडाउमेंट आदि।
- तुर्की में वक्फ का प्रबंधन एक महानिदेशालय द्वारा किया जाता है, जो 1924 से वक्फ का ऑडिट और प्रबंधन करता आ रहा है।
- मिस्र, इराक, सीरिया में औकाफ मंत्रालय का गठन है जो ट्रस्ट की तरह काम करता है।
भारत में वक्फ पर आपत्तियां
कांग्रेस के सांसद मोहम्मद जावेद और एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने इस बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। मुस्लिम संगठनों और नेताओं ने भी संसद से सड़क तक विरोध किया है। उनका कहना है कि वक्फ संशोधन बिल में किए गए बदलाव वक्फ बोर्ड की संरचना, संपत्ति के अधिकार और न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े अहम सवालों पर हैं। सरकार का कहना है कि यह कदम वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए जरूरी हैं, जबकि विपक्षी दलों का तर्क है कि यह बिल अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है।
वक्फ संशोधन बिल और कलेक्टर के अधिकार
वक्फ संपत्तियों का सर्वे अब वक्फ आयुक्त से लेकर कलेक्टर को सौंप दिया गया है। अब कलेक्टर के आदेश को अंतिम माना जाएगा जब विवाद सरकार द्वारा नियंत्रित जमीनों पर हो। हालांकि, कलेक्टर के फैसले के खिलाफ ट्रिब्यूनल में अपील की जा सकती है, लेकिन अब वक्फ ट्रिब्यूनल के निर्णय को अंतिम फैसला नहीं माना जाएगा। इसके फैसलों को अब हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
अब समझते हैं कि वक्फ बाय यूजर के मायने
वक्फ बाय यूजर का मतलब है कि जो संपत्ति लंबे समय से धार्मिक कार्यों, जैसे मस्जिदों और कब्रिस्तानों में उपयोग की जा रही हो, उसे अब वक्फ नहीं माना जाएगा। नए कानून में यह प्रावधान हटा दिया गया है। ‘वक्फ बाय यूजर’ सिद्धांत का कहना है कि ऐसी संपत्ति जो धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्य के लिए निरंतर उपयोग में हो, जैसे मस्जिदों और कब्रिस्तानों के लिए, वह स्वचालित रूप से वक्फ बन जाती है, भले ही उसे औपचारिक रूप से वक्फ घोषित न किया गया हो। अब वक्फ के लिए यह शर्त भी जोड़ी गई है कि वक्फ करने वाले व्यक्ति को कम से कम पिछले पांच सालों से इस्लाम धर्म का पालन करना चाहिए।

मुसलमानों को इस पर आपत्ति
मुसलमानों की मुख्य आपत्ति वक्फ के ढांचे में बदलाव से जुड़ी है। पहले, वक्फ अधिनियम 1995 के तहत, केंद्रीय वक्फ काउंसिल और राज्य वक्फ बोर्ड के सदस्य केवल मुसलमान हो सकते थे। अब, इस नए विधेयक के तहत सभी सदस्य सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएंगे, और उसमें कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्यों का होना अनिवार्य कर दिया गया है।
नए बिल को लेकर अन्य चिंताएँ
केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद में भरोसा दिलाया कि इस बदलाव से मुसलमानों के धार्मिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। हालांकि, नए कानून में यह व्यवस्था है कि अब वक्फ काउंसिल और राज्य वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य बहुमत में हो सकते हैं। पहले के कानून में सभी सदस्य मुसलमान होने चाहिए थे, लेकिन अब केंद्रीय वक्फ काउंसिल के 22 सदस्यों में से 12 और राज्य वक्फ बोर्ड के 11 में से 7 गैर-मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं। यही स्थिति मुसलमानों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है।
कलेक्टर के अधिकारों पर आपत्तियाँ
वक्फ संशोधन बिल में वक्फ संपत्तियों के सर्वे का अधिकार वक्फ आयुक्त से लेकर कलेक्टर को दे दिया गया है। पहले यह अधिकार वक्फ आयुक्त के पास था। अब सरकारी कब्जे वाली वक्फ संपत्तियों के विवाद में कलेक्टर का निर्णय अंतिम माना जाएगा। यदि कोई सरकारी जमीन वक्फ के रूप में पहचानी जाती है, तो उसे वक्फ नहीं माना जाएगा। इन प्रावधानों के कारण कलेक्टर यह तय करेगा कि संपत्ति पर किसका स्वामित्व है और अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपेगा। इसके अलावा, अब वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को अंतिम नहीं माना जाएगा, और इन फैसलों को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी। इससे मामलों के निपटारे में अधिक समय लग सकता है।
पाकिस्तान-बांग्लादेश भी नए वक्फ बिल पर चिंतित
भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भी इस नए वक्फ विधेयक के खिलाफ विरोध जताया है। बांग्लादेश के जमात-ए-इस्लामी और इस्लामी छात्रशिबिर ने विधेयक को निंदनीय बताते हुए बयान जारी किया है, जबकि पाकिस्तान के द डॉन अखबार ने इसे मुसलमानों के खिलाफ बताया है। पाकिस्तान का कहना है कि मोदी सरकार ने यह विधेयक मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाते हुए पास किया है।
9.4 लाख एकड़ जमीन का मालिक है वक्फ
वक्फ एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ होता है ठहरना या पड़ाव। यह माना जाता है कि जब कोई संपत्ति अल्लाह के नाम पर वक्फ कर दी जाती है, तो वह हमेशा के लिए अल्लाह के नाम पर रहती है और उसमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। वक्फ संपत्ति को न तो खरीदा जा सकता है, न बेचा जा सकता है और न ही इसका ट्रांसफर किया जा सकता है। भारत में वक्फ बोर्ड के पास 8.7 लाख संपत्तियां हैं, जो करीब 9.4 लाख एकड़ जमीन में फैली हुई हैं। इन संपत्तियों की कुल कीमत लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपए अनुमानित है। भारत में सेना और रेलवे के बाद सबसे अधिक जमीन वक्फ बोर्ड के पास है।