पाकिस्तान द्वारा भारत के साथ द्विपक्षीय समझौतों को स्थगित करने के अधिकार का प्रयोग बिना उचित विचार-विमर्श के उठाया गया कदम प्रतीत होता है। खासकर 1972 में हुए शिमला समझौते का निलंबन आतंकवादियों का समर्थन करने वाले पाकिस्तान के लिए गंभीर परिणाम लेकर आ सकता है। शिमला समझौते का मुख्य उद्देश्य नियंत्रण रेखा (एलओसी) की पवित्रता को बनाए रखना था। अगर यह समझौता निलंबित होता है, तो इसका मतलब यह होगा कि कोई भी पक्ष एलओसी का पालन करने के लिए बाध्य नहीं होगा, और भारत को एलओसी पार करके कार्रवाई करने का पूरा अधिकार मिल जाएगा।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा गुरुवार को जारी बयान में कहा गया है कि पाकिस्तान भारत के साथ सभी द्विपक्षीय समझौतों को स्थगित करने का अधिकार प्रयोग करेगा, जिसमें शिमला समझौता भी शामिल है। यह कदम सिर्फ शिमला समझौते तक सीमित नहीं है, बल्कि पाकिस्तान ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह इस अधिकार का प्रयोग करेगा, न कि इसे सुरक्षित रखेगा। इसका मतलब है कि पाकिस्तान भविष्य में इन सभी समझौतों को निलंबित करने का निर्णय ले सकता है।
भारत अब नियंत्रण रेखा को पार कर सकता है
पाकिस्तान का हालिया बयान यह संकेत देता है कि वह अब नियंत्रण रेखा (एलओसी) को अस्तित्वहीन मानता है। इसका सीधा अर्थ है कि भारत अब एलओसी पार करने के लिए स्वतंत्र है। शिमला समझौते ने एलओसी को स्थायी सीमा के रूप में स्थापित किया था, जिसके तहत दोनों देशों ने बल प्रयोग न करने और नियंत्रण रेखा का सम्मान करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी। अब इस समझौते का निलंबन भारत को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में आक्रामक रणनीति अपनाने का अधिकार दे सकता है। भारत पीओके के लोगों से सीधा संपर्क स्थापित कर सकता है, जिससे क्षेत्रीय तनाव में वृद्धि हो सकती है और पाकिस्तान को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

कश्मीर पर भारत का रुख और मजबूत होगा
शिमला समझौता कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा बनाए रखने की बुनियाद था। यह दोनों देशों को कश्मीर के मुद्दे को आपसी बातचीत और शांतिपूर्ण तरीके से हल करने के लिए बाध्य करता था। अब इसके निलंबन के बाद, भारत के पास यह तर्क होगा कि पाकिस्तान ने स्वयं इस समझौते को खारिज कर दिया है। इसका परिणाम यह होगा कि भारत कश्मीर पर अपनी नीतियों को और सख्ती से लागू करने के लिए स्वतंत्र हो जाएगा, जिससे कश्मीर पर भारत का रुख और मजबूत हो सकता है।
परमाणु विनाश की धमकी देने वाला कदम
भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु हमलों को रोकने के लिए दो समझौते हुए थे, जो अब पाकिस्तान द्वारा स्थगित कर दिए गए हैं। यदि बयान पर विश्वास किया जाए, तो यह एक चौंकाने वाला कदम है, क्योंकि इससे पाकिस्तान ने पूरी दुनिया को परमाणु विनाश की धमकी दी है। इसके अलावा, बैलिस्टिक मिसाइल परीक्षणों की पूर्व सूचना देने के लिए भी एक समझौता था। इन समझौतों के बिना, और परमाणु गलतफहमियों को रोकने के उपायों के बिना, दोनों देशों के बीच गंभीर गलतफहमियां और तनाव उत्पन्न हो सकते हैं, जो वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरनाक हो सकता है।
कूटनीतिक विश्वसनीयता को नुकसान
समझौते के निलंबन से पाकिस्तान की पहले से ही कमजोर कूटनीतिक विश्वसनीयता और भी हद तक प्रभावित होगी। यह कदम वैश्विक समुदाय द्वारा गैर-जिम्मेदाराना माना जाएगा, और पाकिस्तान का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलगाव बढ़ सकता है। ऐसे में, आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए वैश्विक समर्थन जुटाना और भी कठिन हो जाएगा।
सांप्रदायिक आधार पर विभाजन की कोशिश
1974 में हुए एक समझौते के तहत, दोनों देशों के तीर्थयात्रियों को एक-दूसरे के देशों में जाने की सुविधा प्रदान की गई थी। इस समझौते का निलंबन भारतीय सिख तीर्थयात्रियों को पाकिस्तान के विभिन्न तीर्थ स्थलों पर जाने में कठिनाई उत्पन्न करेगा। यह करतारपुर कॉरिडोर समझौते पर भी लागू होता है, जिसके तहत पाकिस्तानी पीएमओ ने भारतीय सिख तीर्थयात्रियों को वीजा प्रतिबंधों से छूट देने की घोषणा की थी। यह स्पष्ट रूप से भारत के लोगों को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने की कोशिश है।
उड़ान अधिकारों से होने वाली आय का नुकसान
उड़ान अधिकारों के निलंबन से भारतीय निजी एयरलाइनों के वाणिज्यिक हितों को नुकसान होगा। हालांकि, इसका सबसे बड़ा असर पाकिस्तान पर पड़ेगा, क्योंकि उसे उड़ान अधिकारों से होने वाली आय से वंचित होना पड़ेगा, जो पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है।