Caste Census: देश में पहली बार जनगणना के तहत मुस्लिम समुदाय की जातियों और उप-जातियों की गिनती होने जा रही है. अब तक जनगणना में मुस्लिमों को केवल एक धार्मिक समूह के तौर पर गिना जाता था. लेकिन अगली जनगणना में उन्हें भी जातिगत आधार पर गिना जाएगा. सरकार के इस फैसले से न सिर्फ मुस्लिम समाज की सामाजिक और आर्थिक स्थिति सामने आएगी, बल्कि पसमांदा मुस्लिमों जैसे पिछड़े तबकों का आंकड़ा भी साफ हो सकेगा. माना जा रहा है कि पसमांदा मुसलमानों को OBC वर्ग में जगह दी जा सकती है.
राजनीतिक मायने भी बड़े
पिछले दो साल से कांग्रेस इस जातिगत जनगणना की मांग कर रही थी. लेकिन केंद्र की ओर से इस घोषणा के बाद कांग्रेस का यह चुनावी मुद्दा कमजोर पड़ गया है. वहीं बीजेपी इसे पसमांदा मुस्लिमों को साधने के मौके के तौर पर देख रही है.
देश में मुसलमानों को आमतौर पर जातिविहीन माना जाता रहा है. लेकिन अलग-अलग राज्यों में हुए सर्वे और JNU के प्रोफेसर इम्तियाज अहमद जैसे एक्सपर्ट्स की रिसर्च यह दिखाती है कि मुस्लिम समुदाय में भी जातिगत भेदभाव, पेशागत वर्गीकरण और ऊंच-नीच की धारणाएं मौजूद हैं.
आरक्षण की तस्वीर
- भारत में धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता. लेकिन कई मुस्लिम जातियां ओबीसी वर्ग में शामिल हैं.
- केरल में पूरी मुस्लिम आबादी को ओबीसी का दर्जा है.
- तमिलनाडु में लगभग 95% मुस्लिम जातियां आरक्षण के दायरे में आती हैं.
- बिहार में मुस्लिमों को ‘पिछड़ा’ और ‘अति पिछड़ा’ वर्ग में बांटा गया है.
- कर्नाटक में पहले मुस्लिमों को 4% आरक्षण मिला था, जिसे बीजेपी सरकार ने इसे खत्म कर बहुसंख्यक हिंदू जातियों में बांट दिया.
- नेशनल सैंपल सर्वे के मुताबिक, मुस्लिम ओबीसी की हिस्सेदारी मुस्लिम आबादी में लगभग 41% है.
बीजेपी की रणनीति साफ
बीजेपी बार-बार यह कहती रही है कि किसी एक धर्म को सामूहिक रूप से आरक्षण नहीं मिल सकता. लेकिन पसमांदा मुस्लिमों के मुद्दे को उठाकर पार्टी अब मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में है.
एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह कदम एक तरफ पसमांदा समुदाय को प्रतिनिधित्व देगा, तो दूसरी तरफ मुस्लिम समाज की एकता को भी प्रभावित कर सकता है. बीजेपी का कहना है कि पसमांदा मुसलमान लंबे समय से हाशिए पर हैं — चाहे सामाजिक मंच हो या मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, उनकी मौजूदगी बेहद सीमित रही है.
आगे क्या होगा?
जनगणना में अगर जातियों के हिसाब से मुस्लिम समुदाय का डेटा सामने आता है, तो नीतियों और योजनाओं को नए सिरे से तैयार किया जा सकेगा. साथ ही यह साफ हो सकेगा कि किन तबकों को ज्यादा सरकारी मदद की जरूरत है.
