Monday, October 27, 2025
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माता-पिता की मौत के बाद 3 साल तक अकेलेपन में जीता रहा शख्स, कुर्सी पर बैठकर काटे दिन-रात – मुंबई से भावुक कर देने वाली कहानी…

हाइलाइट्स

  • माता-पिता की मौत के बाद मानसिक रूप से पूरी तरह टूट गया शख्स।
  • तीन साल तक नवी मुंबई के फ्लैट में अकेलेपन में गुजारे दिन और रात।
  • NGO की समय पर मदद से बचाई गई जान, अब पनवेल के आश्रम में चल रहा इलाज।


मुंबई:
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में एक ऐसी दिल को छू लेने वाली घटना सामने आई है, जो शहर की चमक-धमक के पीछे छिपे अकेलेपन की सच्चाई को उजागर करती है। 55 वर्षीय अनुप कुमार नायर, एक पूर्व कंप्यूटर प्रोग्रामर, ने माता-पिता की मौत के बाद खुद को नवी मुंबई के घनसोली इलाके में स्थित अपने फ्लैट में तीन साल तक पूरी तरह बंद कर लिया। न कोई बातचीत, न किसी से संपर्क – बस एक कुर्सी और एकांत।

मां-बाप की मौत के बाद टूटी दुनिया

अनुप की मां पूनम्मा नायर भारतीय वायुसेना के दूरसंचार विभाग में कार्यरत थीं, जबकि उनके पिता वीपी कुट्टी कृष्णन नायर टाटा हॉस्पिटल में नौकरी करते थे। बीते छह सालों में दोनों का निधन हो गया। इससे पहले, अनुप के बड़े भाई ने भी 20 साल पहले आत्महत्या कर ली थी। इन लगातार मिलती पारिवारिक त्रासदियों ने उन्हें गहरे अवसाद में धकेल दिया।

फूड डिलीवरी ही बना एकमात्र सहारा

तीन सालों तक अनुप का बाहर की दुनिया से कोई संपर्क नहीं रहा। उनका जीवन केवल ऑनलाइन फूड डिलीवरी तक सिमटकर रह गया था। न वो घर से बाहर निकलते थे और न ही कचरा बाहर फेंकते थे। कभी-कभार सोसायटी के लोग उन्हें ऐसा करने के लिए मनाते थे, लेकिन उन्होंने खुद को पूरी तरह दुनिया से काट लिया था।

जब NGO पहुंचा तो दिखा डरावना सच

SEAL नामक संस्था को जब इस बारे में जानकारी मिली तो उसके सामाजिक कार्यकर्ता मौके पर पहुंचे। फ्लैट की हालत बेहद खराब थी। घर में न तो ढंग का फर्नीचर बचा था और न ही कोई बिस्तर। अनुप एक साधारण कुर्सी पर ही सोते थे। पैरों में गंभीर संक्रमण हो गया था।

अब आश्रम में इलाज और देखभाल

फिलहाल, अनुप को पनवेल स्थित SEAL आश्रम में रखा गया है जहां उनका इलाज और मानसिक देखभाल की जा रही है। अनुप का कहना है, “अब न कोई दोस्त है, न परिवार… और मेरी तबीयत इतनी खराब है कि मैं कोई नौकरी भी नहीं कर सकता।”

अकेलापन, जो किसी को भी निगल सकता है

Harmony Foundation के संस्थापक अब्राहम मथाई का कहना है, “मुंबई जैसे बड़े शहर में भी लोग अगर मदद नहीं मांग पाते, तो वे अकेलेपन के शिकार हो जाते हैं। अनुप सौभाग्यशाली रहे कि उन्हें समय रहते बचा लिया गया। लेकिन समाज में ऐसे कई लोग हैं जो इसी तरह अकेले दम तोड़ देते हैं।”

यह घटना न सिर्फ दिल को झकझोरती है, बल्कि यह भी सोचने पर मजबूर करती है कि तेज रफ्तार जिंदगी में किसी के पास किसी और के लिए वक्त नहीं है — और अकेलापन, एक अदृश्य बीमारी की तरह, खामोशी से लोगों को निगलता जा रहा है।

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