Thursday, September 11, 2025
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मालेगांव ब्लास्ट: 17 साल बाद सभी आरोपी बरी, जानें कैसे गढ़ा गया ‘हिंदू आतंकवाद’ का नैरेटिव

Malegaon Blast Verdict: मालेगांव ब्लास्ट जिसने ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द को चर्चा में लाया, 17 साल बाद कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया

2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस को लेकर कोर्ट का बड़ा फैसला सामने आया है। मुंबई की स्पेशल कोर्ट ने सबूतों के अभाव में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित, समीर कुलकर्णी समेत सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया है। इस धमाके में 6 लोगों की मौत हुई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। करीब 17 साल बाद आए इस फैसले के बाद AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं ने भी सवाल उठाए कि अगर आरोपी बरी हुए, तो फिर उन छह लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार कौन है?

क्या था मामला?
29 सितंबर 2008 को रमजान के दौरान मालेगांव के भीड़भाड़ वाले भिकू चौक इलाके में एक फ्रीडम बाइक में बम ब्लास्ट हुआ था। इस विस्फोट में 6 लोग मारे गए और सौ से ज्यादा घायल हुए। महाराष्ट्र ATS ने जांच की कमान संभाली और इस दौरान साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि विस्फोटक वाली बाइक उन्हीं के नाम पर रजिस्टर्ड थी। बाद में सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को भी गिरफ्तार किया गया। ATS ने 2009 में चार्जशीट दायर की, जिसमें अभिनव भारत संगठन का नाम सामने आया। इस केस को लेकर UAPA और MCOCA जैसी गंभीर धाराओं में केस दर्ज हुआ।

एनआईए की जांच और कोर्ट का फैसला
2011 में यह केस राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपा गया। NIA ने 2016 में साध्वी प्रज्ञा को क्लीनचिट देने की सिफारिश की। कोर्ट ने चार्ज हटाने से इंकार किया, लेकिन आगे की सुनवाई जारी रखी। आखिरकार 2025 में स्पेशल कोर्ट ने कहा कि सभी आरोपियों के खिलाफ सबूत अपर्याप्त हैं और उन्हें बरी कर दिया।

‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द और विवाद
मालेगांव ब्लास्ट के बाद उस समय के गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने पहली बार ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द का इस्तेमाल किया, बाद में दिग्विजय सिंह ने इसे ‘भगवा आतंकवाद’ कहा। भाजपा ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और इसे हिंदू धर्म से जोड़ना करोड़ों लोगों की आस्था का अपमान है।

आगे क्या?
इस केस के बड़े नामों में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर शामिल हैं, जो अब भोपाल से भाजपा सांसद हैं। लंबे वक्त तक जेल में रहने के बाद उन्हें स्वास्थ्य कारणों से जमानत मिली और 2019 में सांसद बनीं।

मालेगांव ब्लास्ट केस का फैसला एक बार फिर इस बहस को ताजा कर देता है कि आतंकी घटनाओं को धर्म से जोड़ना कितना खतरनाक और राजनीतिक रूप से संवेदनशील हो सकता है।

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