जूना अखाड़ा ने किन्नर समुदाय को मुख्यधारा में लाने की शुरुआत की। महाकुंभ में पांच हजार नए नागा संन्यासी शामिल होंगे। नागा संन्यासियों ने मुगलों के खिलाफ ऐतिहासिक युद्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। |
जूना अखाड़ा समाज सुधार के क्षेत्र में लगातार काम कर रहा है। उच्चतम न्यायालय द्वारा किन्नरों को थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता मिलने के बाद, अखाड़े ने उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के उद्देश्य से किन्नर अखाड़े को न केवल अपने अखाड़े में स्थान दिया, बल्कि उन्हें धर्म ध्वजा फहराने और अमृत स्नान (शाही स्नान) करने का भी अवसर प्रदान किया। यह कदम समाज में किन्नर समुदाय की अहमियत और उनके अधिकारों को सम्मान देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।
महाकुंभ में शामिल होंगे पांच हजार से अधिक नागा संन्यासी
शस्त्र विद्या में निपुण और सनातन धर्म की सबसे बड़ी सेना बनाने वाला पंच दशनाम जूना अखाड़ा इस महाकुंभ में पांच हजार से अधिक नए नागा संन्यासी शामिल करेगा, जिनमें से करीब एक हजार को अब तक शामिल किया जा चुका है। वैष्णव और शिव संन्यासी संप्रदाय के 13 अखाड़ों में सबसे बड़ा जत्था जूना अखाड़ा है, जिसमें लगभग 5.50 लाख नागा संन्यासी शामिल हैं।
आठवीं शताब्दी में गठित भैरव अखाड़े को बाद में पंच दशनाम जूना अखाड़ा के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। जूना अखाड़े के संन्यासी अपने ईष्टदेव भगवान शिव और गुरु दत्तात्रेय को मानते हैं। शिव संन्यासी संप्रदाय के तहत दशनामी परंपरा का पालन इस अखाड़े के संन्यासी करते हैं। जूना अखाड़े के संरक्षक महंत हरि गिरि के अनुसार, संन्यास ग्रहण करने के बाद गुरुओं द्वारा इस अखाड़े के दशनामी परंपरा में 10 नाम दिए जाते हैं, जो हैं – गिरि, पर्वत, सागर, पुरी, भारती, सरस्वती, वन, अरण्य, तीर्थ और आश्रम।
मढ़ियों का महत्व और विशेष स्थान
अखाड़े के प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि बताते हैं कि जूना अखाड़ा की आंतरिक संरचना अत्यंत रोचक और व्यवस्थित है। इस अखाड़े के भीतर 52 संन्यासी परिवारों के बीच एक समिति काम करती है, जिसमें सभी बड़े सदस्य एक नियंत्रक के रूप में कार्य करते हैं। इस विशाल संत समूह के संचालन में जूना अखाड़े की चार प्रमुख मढ़ियाँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनमें तीन मढ़ी, चार मढ़ी, 13 मढ़ी और 14 मढ़ी शामिल हैं, और इन मढ़ियों में महंत से लेकर अष्टकौशल महंत, कोतवाल और कोठारी के पद पर चयनित संतों का ही गद्दी पर पट्टाभिषेक किया जाता है।
नागाओं ने निजाम और अहमद शाह अब्दाली को परास्त किया था
जूना अखाड़े के संन्यासी शस्त्र विद्या में माहिर होने के साथ-साथ तलवार, भाला और फरसा जैसे शस्त्रों से लैस रहते हैं। मुगली काल में जब बार-बार मंदिरों और मठों को नष्ट करने की कोशिशें की जा रही थीं, तब नागा संन्यासियों ने मुगलों के खिलाफ युद्ध लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी।
जब अहमद शाह अब्दाली ने मथुरा-वृंदावन के बाद गोकुल पर आक्रमण किया, तब नागा संन्यासियों ने मुगल सेना का मुकाबला कर गोकुल की रक्षा की। इसके अलावा, जूनागढ़ के निजाम के साथ भी नागाओं ने भीषण युद्ध किया था, जिसमें निजाम को करारी हार का सामना करना पड़ा।