Thursday, September 11, 2025
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4,000 किलोमीटर अंदर तक रूस पर ड्रोन हमला — यूक्रेन की रणनीति से भारत को क्या सीखना चाहिए

रूस पर गहराई तक किए गए यूक्रेन के ड्रोन हमलों ने यह साफ कर दिया है कि भारत को अपने काउंटर-ड्रोन सिस्टम को और मजबूत करने की ज़रूरत है। सीमाओं पर तैनाती के साथ-साथ देश के भीतरी इलाकों में भी ड्रोन हमलों से सुरक्षा के उपायों को गंभीरता से लेना होगा।

यूक्रेन का रूस पर गहराई तक ड्रोन हमला – भारत के लिए एक स्पष्ट चेतावनी

यूक्रेन द्वारा रूस पर किए गए ड्रोन हमले न केवल चौंकाने वाले थे, बल्कि बेहद रणनीतिक भी। ये हमले रूस के अंदर लगभग 5,000 किलोमीटर तक जाकर किए गए, जहां सैन्य हवाई अड्डों और बमवर्षक विमानों को सटीकता से निशाना बनाया गया। खास बात यह रही कि इन ऑपरेशनों में लो-कॉस्ट ड्रोन का इस्तेमाल किया गया, जिन्हें बेहद चुपचाप और कुशलता से रूस की सीमा में दाखिल कराया गया।

भारत के लिए क्या सबक?

यूक्रेन की यह रणनीति बताती है कि आज के दौर में खतरे सिर्फ सीमाओं तक सीमित नहीं हैं। दुश्मन दूर बैठकर भी हमला कर सकता है — और यही भारत के लिए बड़ा संकेत है।
भारत को न केवल सीमाओं पर बल्कि आंतरिक इलाकों में भी काउंटर-ड्रोन सुरक्षा तंत्र को मज़बूत करना होगा। इन हमलों ने यह भी दिखाया कि पारंपरिक सुरक्षा उपाय अब पर्याप्त नहीं रह गए हैं।

ड्रोन हमलों से सबक: भारत के लिए सतर्क रहने का समय

रूस के भीतर यूक्रेन द्वारा किए गए ड्रोन हमले यह संकेत देते हैं कि आधुनिक युद्ध की दिशा अब बदल चुकी है। यूक्रेन ने फर्स्ट पर्सन व्यू (FPV) ड्रोन का उपयोग किया, जिन्हें ट्रकों में लगे मोबाइल कंटेनरों से लॉन्च किया गया। ये ट्रक सैन्य ठिकानों के पास खड़े किए गए थे, जिससे यह साफ है कि आज की जंग में टेक्नोलॉजी और चतुराई हथियारों से कहीं आगे है।

भारत को क्यों रहना चाहिए सतर्क?

भारत ने सीमा पर ड्रोन हमलों से निपटने के लिए पहले ही बड़ी तैयारियां की हैं। ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तानी ड्रोन को मार गिराना इसका उदाहरण है। लेकिन सवाल यह है कि क्या देश के भीतर मौजूद संवेदनशील ठिकाने भी उतने ही सुरक्षित हैं?

देश के आंतरिक क्षेत्रों में काउंटर ड्रोन सुरक्षा व्यवस्था अब भी सीमित है। बॉर्डर पर मल्टीलयर ग्रिड, जैमिंग डिवाइस और एयर डिफेंस गन जैसे सिस्टम हैं, परंतु अंदरूनी इलाकों में सुरक्षा कवच को और मज़बूती की ज़रूरत है।

ड्रोन से लड़ाई: अब अगला फोकस क्या होना चाहिए?

1. लेजर-बेस्ड ड्रोन किलिंग सिस्टम:

भारतीय सेना धीरे-धीरे DRDO द्वारा बनाए गए लेजर सिस्टम को शामिल कर रही है। ये छोटे और सीमित रेंज के ड्रोन को मार गिराने में सक्षम हैं, लेकिन आने वाले वर्षों में इनके अधिक शक्तिशाली वर्जन लाए जा रहे हैं।

2. हार्ड किल टेक्नोलॉजी पर ज़ोर:

फाइबर ऑप्टिक ड्रोन जैमिंग से बच सकते हैं, इसलिए उन्हें नष्ट करने के लिए हार्ड किल सिस्टम की मांग बढ़ रही है। सेना ऐसे सिस्टम पर कार्य कर रही है जो ड्रोन के झुंड को एक साथ खत्म कर सके।

3. माइक्रो मिसाइल सिस्टम का ट्रायल:

भारतीय सेना मोबाइल ‘माइक्रो मिसाइल’ सिस्टम का परीक्षण कर रही है जो खासतौर पर ड्रोन स्वार्म (झुंड) को नष्ट करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

4. नौसेना के लिए बढ़ी चुनौती:

नेवी के बेस आमतौर पर युद्ध क्षेत्र से बहुत दूर होते हैं, जिससे ड्रोन हमलों की संभावना और बढ़ जाती है। इसलिए, नौसेना को विशेष रूप से लंबी दूरी की ड्रोन सुरक्षा के उपायों को प्राथमिकता देनी होगी।

रूस पर यूक्रेन के गहरे और चौंकाने वाले ड्रोन हमलों ने यह साफ कर दिया है कि अब युद्ध सिर्फ सीमाओं तक सीमित नहीं। भारत को अपनी आंतरिक और रणनीतिक सुरक्षा को आधुनिक, तेज़ और जवाबी क्षमता से लैस करना होगा। अब समय है टेक्नोलॉजी में निवेश बढ़ाने और हर खतरे का जवाब तैयार रखने का।

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