ईरान और इज़राइल के बीच बढ़ता सैन्य टकराव अब सिर्फ मध्य पूर्व तक सीमित नहीं रहा, इसका असर वैश्विक स्तर पर महसूस किया जा रहा है। खासकर चीन की ऊर्जा सुरक्षा पर इसका सीधा खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि चीन बड़ी मात्रा में ईरान से मिलने वाले सस्ते तेल पर निर्भर करता है।
हाल ही में एक सैन्य कार्रवाई के तहत इज़राइल ने ईरान पर हवाई हमला किया, जिसके बाद से दोनों देशों के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। इससे आशंका है कि ईरान से तेल की आपूर्ति बाधित हो सकती है, जिससे चीन की ऊर्जा व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हो सकती है।
सूत्रों के अनुसार, रूस से तेल एक विकल्प जरूर है, लेकिन उसकी मात्रा सीमित है और वह भी केवल 1 डॉलर प्रति बैरल की मामूली छूट पर उपलब्ध होता है। वहीं, वेनेजुएला से मिलने वाला तेल गुणवत्ता में कमजोर माना जाता है और उसे चीन तक पहुंचाना भी एक बड़ी चुनौती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ईरान में शासन परिवर्तन होता है या वहां की सरकार गिरती है, तो इसके व्यापक आर्थिक परिणाम हो सकते हैं। ईरान यदि फिर से अमेरिकी डॉलर में तेल व्यापार शुरू करता है, तो इसका सीधा असर चीन की मुद्रा और विदेशी व्यापार पर पड़ेगा। ऐसे में चीन को हर साल 20 से 30 अरब डॉलर तक का नुकसान हो सकता है क्योंकि ईरानी तेल फिर अंतरराष्ट्रीय बाजार में सभी के लिए उपलब्ध हो जाएगा।
इस स्थिति का सबसे बड़ा असर चीन की छोटी स्वतंत्र रिफाइनरियों (टीपॉट रिफाइनरियों) पर पड़ सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर ईरानी तेल पर मिलने वाली छूट खत्म होती है, तो इनका लगभग 40% हिस्सा बंद हो सकता है, जिससे रोजगार संकट और ईंधन की कमी जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
इसके अलावा, ईरान में अस्थिरता का असर चीन की बहुप्रतीक्षित बेल्ट एंड रोड परियोजना (BRI) पर भी पड़ सकता है। ईरान और मध्य एशिया में चीन ने जिन रणनीतिक समझौतों और निवेशों पर काम किया है, वे खतरे में पड़ सकते हैं। अब तक पश्चिमी देशों की पाबंदियों के चलते चीन को मोलभाव की शक्ति हासिल थी, लेकिन अगर राजनीतिक समीकरण बदलते हैं, तो यह लाभ भी खत्म हो सकता है।