उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारण बताते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उनके इस फैसले से सियासी हलकों में खलबली मच गई। राज्यसभा के सभापति का यह इस्तीफा संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन सामने आया।
नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उनका यह अचानक फैसला सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है। खास बात यह रही कि संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन राज्यसभा के सभापति धनखड़ का इस्तीफा सामने आया। इससे भी हैरानी की बात यह रही कि इस्तीफे के कई घंटे बाद तक सरकार की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई। इस बीच विपक्ष ने न सिर्फ हैरानी जताई, बल्कि केंद्र सरकार को घेरना भी शुरू कर दिया। अब बड़ा सवाल यह है कि आखिर इस इस्तीफे की असली वजह क्या रही।
महाभियोग के मुद्दे पर बहस, फिर इस्तीफे का फैसला!
धनखड़ के इस्तीफे को लेकर कई कयास लगाए जा रहे हैं। कुछ लोग इसे न्यायपालिका पर उनके तीखे बयानों से जोड़ रहे हैं, तो कुछ इसे सरकार की नीतियों पर उनके अलग रुख से उपजे असंतोष का नतीजा बता रहे हैं। वहीं कुछ का मानना है कि हाल ही में विपक्षी नेताओं के साथ बढ़ी नजदीकियों से सरकार में असहजता बढ़ी।
न्यूज 18 की रिपोर्ट के मुताबिक, असली वजह थी जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को लेकर सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री के साथ फोन पर हुई तीखी बहस। सोमवार शाम को हुई इस बहस में धनखड़ पर इस प्रस्ताव को स्वीकार करने पर सवाल उठाया गया। बताया जाता है कि सरकार को इस कदम की जानकारी नहीं थी, जबकि धनखड़ ने राज्यसभा के सभापति के रूप में अपनी संवैधानिक शक्तियों का हवाला देते हुए प्रस्ताव मंजूर कर लिया।
इसके बाद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू ने भी धनखड़ की बुलाई गई बैठक में शामिल नहीं हुए, जिससे संकेत मिला कि मतभेद काफी गहरे हो चुके थे।
विपक्षी नेताओं से बढ़ती नजदीकी भी बनी कारण?
15 जुलाई को उपराष्ट्रपति कार्यालय ने एक वीडियो जारी किया, जिसमें विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे धनखड़ से मिलते नजर आ रहे थे। संसद सत्र शुरू होने से ठीक एक दिन पहले उन्होंने अरविंद केजरीवाल से भी मुलाकात की, जिसकी तस्वीरें भी सामने आईं।
हालांकि यह मुलाकातें शिष्टाचार का हिस्सा मानी जाती हैं, लेकिन मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया कि इनमें धनखड़ ने केंद्र सरकार की आलोचना की बातें भी कहीं। खास बात है कि 2024 में यही विपक्षी दल धनखड़ पर पक्षपात का आरोप लगाकर महाभियोग की धमकी दे चुके थे।
मार्च के बाद से धनखड़ ने विपक्ष के साथ संबंध बेहतर करने की कोशिशें कीं, ताकि अपने ऊपर लगे पक्षपात के आरोपों को गलत साबित कर सकें। वे अक्सर कांग्रेस अध्यक्ष खरगे, जयराम रमेश और प्रमोद तिवारी से मिलते रहे। आज वही नेता सवाल उठा रहे हैं कि आखिर धनखड़ ने अचानक इस्तीफा क्यों दिया और सरकार से अपील कर रहे हैं कि उन्हें मनाकर इस्तीफा वापस लेने के लिए कहा जाए।
पिछले दिसंबर के मुकाबले यह सियासी तस्वीर में बड़ा बदलाव माना जा रहा है।