चक्रवात ‘मोंथा’: बंगाल की खाड़ी के ऊपर बना निम्न दबाव का क्षेत्र अब चक्रवाती तूफ़ान में बदलने की प्रक्रिया में है। इसके असर से 28 से 31 अक्टूबर के बीच पश्चिम बंगाल के कई जिलों में भारी बारिश होने की संभावना है।
नई दिल्लीः दक्षिण-पूर्वी बंगाल की खाड़ी के ऊपर बना गहरा दबाव क्षेत्र धीरे-धीरे तेज़ होता जा रहा है। संभावना है कि सोमवार सुबह तक यह चक्रवाती तूफ़ान ‘मोंथा’ का रूप ले लेगा। तमिलनाडु में इस खतरे को देखते हुए ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया है। प्रशासन ने मछुआरों को समुद्र में न जाने की चेतावनी दी है। जो मछुआरे पहले से समुद्र में हैं, उन्हें ऊँची लहरों और तेज़ हवाओं के ख़तरे को देखते हुए तुरंत तट पर लौटने की सलाह दी गई है। सर्दी की दस्तक के साथ ही यह चक्रवाती तूफ़ान दक्षिण भारत में भारी तबाही मचा सकता है।
सर्दियों में चक्रवाती तूफान क्यों आते हैं?
सवाल उठता है कि सर्दियों के मौसम में ही ज़्यादातर चक्रवाती तूफ़ान क्यों बनते हैं? विशेषज्ञों के अनुसार, सर्दियों में भी समुद्र का पानी कुछ समय तक गर्म बना रहता है, जबकि आसपास का मौसम ठंडा हो जाता है। चक्रवात बनने के लिए समुद्र की सतह का तापमान कम से कम 26 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक होना ज़रूरी होता है। जब समुद्र का गर्म पानी हवा को ऊपर की ओर उठाता है, तो वायुमंडल में निम्न दबाव का क्षेत्र बनता है। यही निम्न दबाव जब तेज़ हवाओं और नमी के साथ घूमने लगता है, तो चक्रवाती तूफ़ान का रूप ले लेता है।

पोस्ट मानसून का कितना प्रभाव पड़ता है?
भारत में अक्टूबर से दिसंबर के बीच का समय ‘पोस्ट-मॉनसून सीजन’ कहलाता है। इस अवधि में हवा की दिशा और दबाव में बदलाव आता है, जिससे बंगाल की खाड़ी और अरब सागर जैसे क्षेत्रों में चक्रवात बनने की संभावना बढ़ जाती है। इन समुद्रों में पानी सर्दियों की शुरुआत में भी काफी गर्म रहता है, इसलिए तूफानों को ऊर्जा मिलती रहती है।
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ठंड का चक्रवातों के बनने में सीधा योगदान नहीं होता।
वास्तव में ठंड खुद चक्रवात पैदा नहीं करती। बल्कि, सर्दी की शुरुआत के बावजूद समुद्र की गर्माहट और बदलती हवाओं का मेल चक्रवात बनने के लिए अनुकूल माहौल तैयार करता है। दिसंबर के बाद जैसे-जैसे समुद्र का तापमान कम होने लगता है, वैसे-वैसे चक्रवाती तूफ़ानों की संभावना भी घट जाती है।
