प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में 13 जनवरी से महाकुंभ का शुभारंभ होने जा रहा है। साधु-संतों और अखाड़ों का यहां आगमन जारी है, और उनके अद्भुत रूप श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। आज हम बात करेंगे हठयोगी संत प्रमोद गिरी जैसे साधुओं की, जो माइनस 20 डिग्री तापमान में तपस्या कर सकते हैं, 60 डिग्री की गर्मी में ध्यान लगा सकते हैं और कड़कती ठंड में बर्फीले पानी से स्नान कर लेते हैं। इन हठयोगियों की अद्भुत शक्ति और तपस्या का रहस्य क्या है? कहां से प्राप्त होती है इन्हें इतनी असीम ताकत? इन सवालों का जवाब जानने के लिए पढ़ें यह खास रिपोर्ट।
सुबह 4 बजे का समय और कड़ाके की ठंड। प्रयागराज में तापमान करीब माइनस के करीब पहुंच रहा है, और इसी ठंड में तप और साहस का अद्भुत प्रदर्शन कर रहे हैं नागा साधु प्रमोद गिरी। संत प्रमोद गिरी अपने हठयोग के कारण महाकुंभ 2025 में चर्चा का केंद्र बने हुए हैं। उनकी दिनचर्या का मुख्य आकर्षण है सुबह-सुबह घड़े के ठंडे पानी से स्नान। दावा किया जा रहा है कि उन्हें 61 घड़ों में रातभर रखे ठंडे पानी से स्नान कराया गया। महाकुंभ की शुरुआत में बाबा ने 51 घड़ों के पानी से स्नान शुरू किया था। उनका प्रण है कि कुंभ समाप्ति तक यह संख्या 108 घड़ों तक पहुंच जाएगी। बाबा का यह अनोखा तप श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण और प्रेरणा का विषय बना हुआ है।
नागा साधुओं का हठयोग: महाकुंभ में तपस्या का अद्भुत प्रदर्शन
अब सवाल उठता है कि इतनी कड़कड़ाती ठंड में 61 घड़ों के ठंडे पानी से स्नान करने के बाद भी संत प्रमोद गिरी को ठंड क्यों महसूस नहीं होती। क्या सच में सर्दी और गर्मी का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता? अगर ऐसा है, तो उन्होंने इसे कैसे संभव किया? जानकारों का मानना है कि यह सब हठयोग की साधना का परिणाम है। हठयोग के जरिए नागा साधु अपने शरीर को इतना सशक्त और सहनशील बना लेते हैं कि उन्हें न सर्दी परेशान करती है, न गर्मी। न तो बारिश उनका ध्यान भंग करती है और न ही आंधी-तूफान।
साधुओं का यह कठोर अभ्यास ही उन्हें विशेष बनाता है और उनके हठयोग को श्रद्धालुओं के बीच सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र बनाता है। महाकुंभ में इन नागा साधुओं का यह तप और साधना देखना श्रद्धालुओं के लिए एक अद्भुत अनुभव है।
महाकुंभ 2025: हठयोगियों के अनोखे रूप
महाकुंभ में तरह-तरह के हठयोगी अपनी तपस्या से श्रद्धालुओं का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। इनमें से एक हैं संत केवलदास मेघवंशी जी, जो खुद को जमीन में गाड़कर तपस्या करते हैं और इस दौरान लगातार माला जपते रहते हैं। दूसरे हैं हठयोगी गीतानंद गिरी जी, जो 45 किलो वजनी रुद्राक्ष की माला धारण कर अनोखी साधना कर रहे हैं। वहीं तीसरे हठयोगी महाकाल गिरी जी ने पिछले 9 साल से अपना एक हाथ त्याग रखा है। यानी, वे अपने एक हाथ का कोई उपयोग नहीं करते। महाकुंभ में हठयोग की ये झलकियां श्रद्धालुओं को जरूर रोमांचित करती हैं, लेकिन यह साधना आसान नहीं है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी महाराज बताते हैं कि हठयोग का उद्देश्य केवल तपस्या नहीं है। इसके तीन मुख्य उद्देश्य हैं:
- शरीर और मन की शुद्धि।
- शारीरिक शक्ति और मानसिक स्थिरता।
- आत्मिक विकास और आध्यात्मिकता की ओर बढ़ना।
महाकुंभ में इन साधुओं के अद्भुत तप और साधना को देखकर श्रद्धालु अचंभित हो रहे हैं और उनकी साधना को श्रद्धा से नमन कर रहे हैं।

हठयोग: साधना का कठिन मार्ग
योग की दुनिया में हठयोग का एक विशेष महत्व है। इसमें “ह” सूर्य का प्रतीक है, जो ऊर्जा और गर्मी का प्रतिनिधित्व करता है, और “ठ” चंद्रमा का, जो शीतलता और शांति का प्रतीक है। हठयोग का मूल उद्देश्य इन दोनों ऊर्जा शक्तियों के बीच संतुलन बनाना है। हठयोग को साधना आसान नहीं है। यह एक गहरी और जटिल प्रक्रिया है, जिसमें निरंतर अभ्यास और आत्मानुशासन की आवश्यकता होती है। इसमें सिद्धि प्राप्त करने के लिए साधक को कई चरणों पर महारथ हासिल करनी होती है, जैसे:
- नियमों का पालन: जीवन में संयम और अनुशासन।
- आसन: शरीर को साधने के लिए शारीरिक अभ्यास।
- प्राणायाम: सांसों पर नियंत्रण।
- धारणा और ध्यान: मानसिक एकाग्रता और स्थिरता।
- समाधि: आत्मा का परमात्मा से मिलन।
इन सभी चरणों में महारथ हासिल करने के बाद ही कोई साधु हठयोग में सिद्धि प्राप्त करता है। यह तपस्या और धैर्य का ऐसा मार्ग है, जो साधक को शारीरिक और मानसिक सीमाओं से परे ले जाता है।
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