Monday, October 27, 2025
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बजट के बाद RBI की सौगात: रेपो रेट में कटौती से सस्ते होंगे लोन

RBI मॉनेटरी पॉलिसी: इनकम टैक्स में राहत के बाद अब मिडिल क्लास को किफायती लोन की सौगात मिली है। नए गवर्नर संजय मल्होत्रा की अध्यक्षता में हुई मौद्रिक नीति समिति (MPC) की पहली बैठक में अहम फैसलों की घोषणा की जा रही है।

RBI मॉनेटरी पॉलिसी: इनकम टैक्स में राहत के बाद अब मिडिल क्लास को किफायती लोन का तोहफा मिला है। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने मौद्रिक नीति समिति (MPC) की तीन दिवसीय बैठक के फैसलों की जानकारी देते हुए बताया कि छह सदस्यीय समिति ने सर्वसम्मति से रेपो दर में 0.25% की कटौती कर इसे 6.25% करने का निर्णय लिया है। साथ ही, एमपीसी ने अपनी नीतिगत स्थिति को ‘तटस्थ’ बनाए रखने का फैसला किया है।

लगभग पांच वर्षों बाद रेपो रेट में यह पहली 0.25% की कटौती की गई है। गौरतलब है कि पिछले दो सालों से रेपो दर 6.50% पर स्थिर बनी हुई थी।

आरबीआई ने आखिरी बार मई 2020 में, कोरोना महामारी के दौरान, रेपो रेट को 0.40% घटाकर 4% किया था। इसके बाद, रूस-यूक्रेन युद्ध के आर्थिक प्रभावों से निपटने के लिए मई 2022 से नीतिगत दरों में बढ़ोतरी शुरू हुई, जो फरवरी 2023 में स्थिर हुई थी।

GDP ग्रोथ का अनुमान 6.7%

आरबीआई ने अगले वित्त वर्ष के लिए देश की आर्थिक वृद्धि दर 6.7% रहने का अनुमान लगाया है, जबकि चालू वित्त वर्ष में इसे 6.4% बनाए रखने का पूर्वानुमान बरकरार रखा है।

वहीं, खुदरा मुद्रास्फीति अगले वित्त वर्ष में 4.2% रहने का अनुमान है, जबकि मौजूदा वित्त वर्ष में इसके 4.8% रहने की संभावना जताई गई है।

महंगाई पर राहत की उम्मीद
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि नई फसल की आवक से खाद्य मुद्रास्फीति में नरमी आने की संभावना है। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है, लेकिन यह वैश्विक चुनौतियों से पूरी तरह अछूती नहीं है।

मल्होत्रा ने यह भी बताया कि मौद्रिक नीति रूपरेखा लागू होने के बाद से औसत मुद्रास्फीति नियंत्रित रही है, जिससे अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनी हुई है।

RBI की मौद्रिक नीति की मुख्य बातें

🔹 रेपो रेट: आरबीआई ने रेपो दर में 0.25% की कटौती कर इसे 6.25% कर दिया है। यह पांच साल बाद पहली बार घटाई गई है। पिछली कटौती मई 2020 में हुई थी।
🔹 नीतिगत रुख: आरबीआई ने ‘तटस्थ’ मौद्रिक नीति रुख बनाए रखने का निर्णय लिया।
🔹 GDP ग्रोथ: वित्त वर्ष 2025-26 में 6.7% आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान।
🔹 मुद्रास्फीति: अगले वित्त वर्ष में 4.2% तक घटने की उम्मीद, जबकि चालू वित्त वर्ष में इसके 4.8% रहने की संभावना।
🔹 महंगाई पर राहत: खाद्य मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय कमी की उम्मीद, जबकि मुख्य मुद्रास्फीति में मध्यम वृद्धि की संभावना।
🔹 डिजिटल बैंकिंग सुधार:

  • बैंकों के लिए ‘bank.in’ और
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के लिए ‘fin.in’ डोमेन निर्धारित।
    🔹 वैश्विक परिदृश्य: आरबीआई ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को चुनौतीपूर्ण बताया, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत और लचीला करार दिया।
    🔹 चालू खाता घाटा: यह टिकाऊ स्तर पर बने रहने की उम्मीद।
    🔹 विदेशी मुद्रा भंडार: 31 जनवरी 2025 तक 630.6 अरब डॉलर पर पहुंचा।
    🔹 अगली बैठक: मौद्रिक नीति समिति (MPC) की अगली बैठक 7-9 अप्रैल को होगी।

महामारी के दौरान मिली थी राहत

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मई 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान रेपो दर में 0.40% की कटौती कर इसे 4% कर दिया था। इसके बाद, रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न आर्थिक जोखिमों से निपटने के लिए मई 2022 में ब्याज दरों में बढ़ोतरी का सिलसिला शुरू हुआ, जो फरवरी 2023 में जाकर थमा।

ब्याज दरों पर फैसला आज

मौद्रिक नीति समिति (MPC) की तीन दिवसीय समीक्षा बैठक बुधवार को शुरू हुई थी, जिसका अंतिम दिन शुक्रवार है। आज ब्याज दर पर महत्वपूर्ण फैसला लिया जाएगा। यह आरबीआई के नए गवर्नर संजय मल्होत्रा की अगुवाई में होने वाली पहली द्विमासिक समीक्षा बैठक है। मल्होत्रा ने दिसंबर में शक्तिकांत दास का कार्यकाल समाप्त होने के बाद पदभार संभाला था।

विशेषज्ञों के अनुमान

  • डीबीएस ग्रुप रिसर्च की वरिष्ठ अर्थशास्त्री राधिका राव ने कहा कि एमपीसी के 0.25% की कटौती कर रेपो रेट को 6.25% पर लाने के पक्ष में मतदान करने की संभावना है।
  • बैंक ऑफ अमेरिका ग्लोबल रिसर्च का भी मानना है कि मौजूदा आर्थिक स्थिति और मुद्रास्फीति दर में नरमी को देखते हुए ब्याज दरों में कटौती जरूरी हो सकती है।
  • उद्योग मंडल एसोचैम ने भी अनुमान लगाया है कि रेपो दर को 6.25% पर लाने की व्यापक उम्मीदें हैं।
  • एसबीआई रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, इस मौद्रिक समीक्षा में 0.25% की कटौती संभव है।

ब्याज दर कटौती की उम्मीद

उम्मीद की जा रही है कि ब्याज दर में 0.25% की कटौती का फैसला सर्वसम्मति से लिया जाएगा, जिससे कर्ज सस्ता होगा और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।

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