Monday, October 27, 2025
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PM मोदी का नया दांव: ‘पाक बेनकाब’ मिशन में थरूर और ओवैसी की एंट्री! जानिए क्यों हुआ ये चौंकाने वाला फैसला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहचान एक ऐसे नेता की है, जो अपने अप्रत्याशित फैसलों से विपक्ष को अक्सर चौंका देते हैं। जब तक विपक्ष सोच पाता है, मोदी अगला कदम उठा चुके होते हैं। इसी कड़ी में अब शशि थरूर और असदुद्दीन ओवैसी को बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल करने का फैसला भी वैसा ही बड़ा और रणनीतिक कदम माना जा रहा है। मिशन है – पाकिस्तान को दुनिया के सामने बेनकाब करना.

संयुक्त राष्ट्र में दशकों का अनुभव रखने वाले शशि थरूर और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अपनी बदली छवि से चर्चा में आए असदुद्दीन ओवैसी अब पीएम मोदी के बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल हैं। थरूर की कूटनीतिक समझ और ओवैसी की पाकिस्तान पर सख्त राय—दोनों ही इस मिशन को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूती देने वाले हैं

थरूर और ओवैसी को सौंपी गई बड़ी जिम्मेदारी – ‘पाक बेनकाब मिशन’ में निभाएंगे अहम भूमिका!

कूटनीति और देशभक्ति का अनोखा संगम!
प्रधानमंत्री मोदी ने एक ऐसा कदम उठाया है जो सिर्फ चौंकाता नहीं, बल्कि भारत की वैश्विक रणनीति की गहराई को भी दर्शाता है। बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल हुए दो चेहरे – शशि थरूर और असदुद्दीन ओवैसी – अब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का पक्ष मजबूती से रखने के लिए तैयार हैं।

शशि थरूर – कूटनीति के माहिर खिलाड़ी:
1978 से संयुक्त राष्ट्र में सेवा करते हुए, थरूर ने यूएनएचसीआर से लेकर अवर महासचिव पद तक का लंबा और प्रभावशाली सफर तय किया है।
➡ 2006 में UN महासचिव की दौड़ में दूसरे स्थान तक पहुंचे थरूर, अंतरराष्ट्रीय राजनीति के हर रंग को बारीकी से समझते हैं।
➡ अमेरिका, रूस, यूक्रेन या पाकिस्तान — थरूर जानते हैं कब चुप रहना है और कब बोलना।
➡ ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी थरूर ने पूरी मजबूती से भारत का पक्ष रखा और मीडिया पर उसकी गूंज सुनाई दी।

असदुद्दीन ओवैसी – एक बदली हुई छवि:
कभी कटु विरोधी माने जाने वाले ओवैसी ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद एक नई छवि गढ़ी — एक मुखर, स्पष्ट और राष्ट्रभक्त नेता की।
➡ “पाक को ऐसी सख्त सीख दी जाए कि दूसरा पहलगाम न हो” — ओवैसी का यह बयान आज भी लोगों को याद है।
➡ उनकी इस भूमिका की सराहना भाजपा नेता भी कर रहे हैं।
➡ आज जब उन्हें बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल में जगह मिली है, तो यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं, बल्कि एक रणनीतिक नियुक्ति है।

ऑपरेशन सिंदूर के प्रबल समर्थक रहे असदुद्दीन ओवैसी – अब भारत की आवाज़ बनेंगे अंतरराष्ट्रीय मंच पर!

शुरू से ही मुखर:
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भारत सरकार के ऑपरेशन सिंदूर को न केवल खुलेआम समर्थन दिया, बल्कि टीवी डिबेट्स में पाकिस्तान की नीति पर जमकर हमला भी बोला। कई बार वह पाकिस्तानी प्रवक्ताओं से सीधे भिड़ते नज़र आए और भारत की सुरक्षा को सर्वोपरि बताते हुए कहा —
“देश पहले है, बाकी सब बाद में।”

स्पष्टवादिता ही पहचान:
एक इंटरव्यू में उन्होंने साफ कहा —
“मैं वही बोलता हूं जो मेरे दिल में होता है। लोग उसे कभी अच्छा मानते हैं, कभी बुरा। लेकिन मेरे हिंदू दोस्त मुझे बेहतर तरीके से समझते हैं।”
यह बयान दर्शाता है कि ओवैसी के लिए राष्ट्र सर्वोच्च है और विचारधारा से पहले देश आता है।

मुस्लिम चेहरा, वैश्विक रणनीति:
बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल में उनकी भूमिका को लेकर यह संभावना जताई जा रही है कि उन्हें मुस्लिम देशों में भारत का पक्ष रखने के लिए भेजा जा सकता है।
➡ अंतरराष्ट्रीय मंच पर ओवैसी की छवि एक कट्टर मुस्लिम नेता की रही है।
➡ जब ऐसा चेहरा भारत की ओर से मुस्लिम देशों से संवाद करेगा, तो उसका प्रभाव कहीं अधिक गहरा होगा।

कानून की पृष्ठभूमि, दमदार तर्क:
लंदन से कानून की पढ़ाई कर चुके ओवैसी न केवल एक प्रभावशाली वक्ता हैं, बल्कि तर्क के साथ अपनी बात रखने की कला में निपुण हैं।
➡ उनकी वकालत की पृष्ठभूमि उन्हें अन्य नेताओं से अलग बनाती है — उनकी बात को काटना आसान नहीं।
➡ यही वजह है कि वह भारत का पक्ष बड़ी मजबूती से रख सकते हैं।

इतिहास फिर दोहरा रहा है:
1994 की तरह, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर अटल बिहारी वाजपेयी को जिनेवा में भारत का प्रतिनिधित्व करने भेजा था, वैसी ही एकजुटता अब ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में देखने को मिल रही है।
➡ वाजपेयी की उपस्थिति से पाकिस्तान चौंका था।
➡ अब ओवैसी और थरूर की मौजूदगी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की कूटनीतिक ताकत का प्रदर्शन करेगी।

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