भारत की इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) निर्माण की महत्वाकांक्षा को बड़ा धक्का पहुंचा है, क्योंकि चीन ने रेयर अर्थ मैग्नेट्स, मिश्रण और अलॉय जैसे महत्वपूर्ण कंपोनेंट्स के निर्यात पर रोक लगा दी है। ये तत्व न केवल खनन और प्रसंस्करण में जटिल हैं, बल्कि इनके कारण पर्यावरण को भी गंभीर क्षति होती है और इनकी उत्पादन लागत काफी अधिक होती है।
चीन के इस कदम से भारतीय ईवी उद्योग के विकास पर असर पड़ सकता है, क्योंकि अधिकांश रेयर अर्थ तत्वों की आपूर्ति चीन से होती है। भारत को अब वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी होगी या घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के उपाय करने होंगे। सरकार और उद्योग जगत इस चुनौती से निपटने के लिए नई रणनीतियों पर विचार कर रहे हैं।
यह प्रतिबंध वैश्विक स्तर पर भी प्रभाव डाल सकता है, जिससे ईवी बैटरियों और अन्य महत्वपूर्ण उपकरणों की लागत बढ़ने की आशंका है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस स्थिति में भारत को स्वदेशी उत्पादन को प्राथमिकता देते हुए दीर्घकालिक समाधान तलाशने की जरूरत है।

सरकार की ईवी सेक्टर को गति देने की पहल
भारत सरकार इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) सेक्टर को तेजी से विकसित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। ऐसे समय में जब वैश्विक स्तर पर ईवी तकनीक को अपनाने पर जोर दिया जा रहा है, सरकार ने बजट 2025 में ईवी मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए कई प्रोत्साहन और वित्तीय सहायता प्रदान की है।
इन नीतियों का उद्देश्य देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन को बढ़ाना और ई-मोबिलिटी को मजबूती देना है। सरकार की इस पहल से न केवल ईवी उद्योग को गति मिलेगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा दक्षता में भी सुधार होगा। उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि इन नीतियों से ईवी सेक्टर में निवेश बढ़ेगा और घरेलू उत्पादन को मजबूती मिलेगी।
इस रणनीतिक कदम से भारत वैश्विक ईवी बाजार में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, जिससे देश में स्थायी और स्वच्छ ऊर्जा परिवहन को बढ़ावा मिल सके।

ट्रेड वॉर के बीच चीन का बड़ा कदम: रेयर अर्थ निर्यात पर रोक
चीन ने अमेरिका द्वारा उसकी टेक्नोलॉजी, विशेष रूप से सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री पर लगाए गए प्रतिबंधों के जवाब में रेयर अर्थ एलॉय और मैग्नेट्स के निर्यात को रोक दिया है। यह कदम न केवल चीन की खनिज संसाधनों पर पकड़ को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक व्यापार में उसकी रणनीतिक ताकत को भी उजागर करता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला अमेरिका के साथ चल रही ट्रेड वॉर का हिस्सा है और चीन ने इसे एक मजबूत हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। इस प्रतिबंध के कारण ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस, सेमीकंडक्टर और मिलिट्री सेक्टर की वैश्विक सप्लाई चेन पर व्यापक असर पड़ा है।
अब दुनिया के कई देश वैकल्पिक स्रोतों की तलाश में जुट गए हैं, ताकि अपनी औद्योगिक जरूरतों को पूरा कर सकें और इस व्यापारिक तनाव से बचाव किया जा सके।

भारत पर चीन के रेयर अर्थ प्रतिबंध का असर
भारत वर्तमान में इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) निर्माण के लिए आवश्यक रेयर अर्थ मैग्नेट्स के आयात पर निर्भर है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने लगभग 870 टन रेयर अर्थ मैग्नेट्स आयात किए, जिसकी कीमत 306 करोड़ रुपये थी।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, चीन वैश्विक स्तर पर लगभग 70 प्रतिशत रेयर अर्थ खनन और 90 प्रतिशत उत्पादन में प्रमुख भूमिका निभाता है। ऐसे में चीन द्वारा निर्यात पर रोक लगाने से भारतीय ईवी उद्योग पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। संभावनाएं जताई जा रही हैं कि इस प्रतिबंध के चलते इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतों में लगभग 8 प्रतिशत तक वृद्धि हो सकती है, जिसका सीधा असर ग्राहकों पर पड़ेगा।
इसके अलावा, भारत के ऑटो निर्माता कंपनियों को अब मैग्नेट्स के ‘एंड यूज’ यानी उनके अंतिम उपयोग की स्पष्ट घोषणा करनी होगी, तभी शिपमेंट की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी। यह प्रक्रिया काफी जटिल है और इसके लिए चीनी दूतावास से मंजूरी लेनी होगी। खबरों के अनुसार, भारत ने अब तक 30 एप्लिकेशन भेजी हैं, जो अभी भी चीन की स्वीकृति का इंतजार कर रही हैं।
सरकार और उद्योग जगत अब इस चुनौती से निपटने के लिए वैकल्पिक उपायों और घरेलू उत्पादन बढ़ाने की रणनीति पर विचार कर रहे हैं। यह प्रतिबंध भारत की ईवी महत्वाकांक्षाओं के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है, जिससे देश को नई आपूर्ति श्रृंखला विकसित करने की आवश्यकता होगी।

रेयर अर्थ संकट पर ऑटो सेक्टर की प्रतिक्रिया
भारतीय ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (SIAM) ने चीन द्वारा रेयर अर्थ मैग्नेट्स के निर्यात पर लगाई गई रोक को लेकर सरकार के सामने अपनी चिंता व्यक्त की है। संगठन का कहना है कि यदि इन महत्वपूर्ण घटकों की सप्लाई बाधित होती है, तो वाहन निर्माण पर बड़ा असर पड़ सकता है।
इस समस्या के समाधान के लिए भारतीय सरकार सक्रिय रूप से प्रयास कर रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार ऑटो उद्योग के प्रमुख प्रतिनिधियों का एक दल बीजिंग भेजने पर विचार कर रही है, ताकि चीन के अधिकारियों से बातचीत कर इस मुद्दे का समाधान निकाला जा सके। इससे भारतीय वाहन निर्माताओं को आवश्यक कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है।