Thursday, September 11, 2025
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नाग पंचमी 2025: आज भी करते हैं नागराज रक्षा, केवल दर्शन से दूर होता है कालसर्प दोष, जानिए इसका रहस्य

उत्तराखंड के नैनीताल जिले में भीमताल की सबसे ऊँची चोटी पर स्थित करकोटक नाग मंदिर, आस्था और प्रकृति का अनोखा संगम प्रस्तुत करता है। इस मंदिर को ‘भीमताल का मुकुट’ कहा जाता है। समुद्र तल से ऊँचाई पर स्थित यह स्थल न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण भी खास है। नैनीताल से करीब 22 किमी दूर स्थित इस मंदिर तक जाने का रास्ता हरियाली, शांत वातावरण और मनोरम दृश्यों से भरपूर है, जो हर श्रद्धालु को एक खास आध्यात्मिक अनुभव कराता है।

मंदिर तक पहुँचने के लिए आधा रास्ता बाइक से तय किया जा सकता है, जबकि शेष रास्ता पैदल ही चढ़ना होता है। इस दौरान पक्षियों की चहचहाहट और ताजगी भरी हवा यात्रा को और भी रोचक बना देती है। रास्ते में दिखती भीमताल झील की झलक थकान को मिटा देती है। लगभग 5 किमी की चढ़ाई के बाद जब श्रद्धालु मंदिर की चोटी पर पहुँचते हैं, तो वहाँ स्थापित करकोटक नाग की सुंदर प्रतिमा को देख श्रद्धा से नतमस्तक हो जाते हैं।

यहाँ नागराज को चढ़ाया जाने वाला प्रसाद भी विशेष है—दूध और जल के साथ-साथ ककड़ी और भुट्टा भी अर्पित किए जाते हैं, जो लोक आस्था की अनूठी परंपरा को दर्शाता है। हर साल ऋषि पंचमी के अवसर पर यहाँ भव्य मेला लगता है, जिसे नागराज का जन्मदिवस माना जाता है। इस दिन बड़ी संख्या में भक्त मंदिर पहुँचते हैं और नागराज को भोग अर्पित करते हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, करकोटक नाग की पूजा विशेष रूप से कालसर्प दोष से मुक्ति दिलाती है। यही वजह है कि यह मंदिर श्रद्धालुओं की गहरी आस्था का केंद्र बना हुआ है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, करकोटक नाग का सिर मंदिर में स्थित है, जबकि उसकी पूँछ करकोटक पहाड़ी की तलहटी में स्थित माँ केंचुला देवी मंदिर तक फैली है। लोगों का विश्वास है कि आज भी करकोटक नाग, भीमताल की रक्षा करता है और उसकी कृपा यहाँ के हर भक्त पर बनी रहती है।

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